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जाने कब के बिखर गये होते....

= ग़ज़ल =
जाने कब के बिखर गये होते.
ग़म न होता,तो मर गये होते.


काश अपने शहर में गर होते,
दिन ढले हम भी घर गये होते.


इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना -
सारे नासूर भर गये होते.


दूरियाँ उनसे जो रक्खी होतीं,
क्यूँ अबस बालो-पर गये होते.


ग़र्क़ अपनी ख़ुदी ने हमको किया,
पार वरना उतर गये होते.


कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते.


बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना
ख़्वाब बनकर बिखर गये होते.


हम भी "साबिर" के साथ, रात कभी-
ख़्वाहिशों के नगर गये होते.

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Comment

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Comment by Vipul Kumar on June 25, 2012 at 9:57pm

कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते.

waah mere mohtaram kya sh'er kaha hai. bahut hi khoob....... maza aa gaya.

baaqi ash'ar bhi behad umda kahe haiN.

bas

बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना" ye misra kharij az bahr hai. dekh leN.

 aur "रक्खी" Galati se type ho gaya hai. wahaN "rakhi" hona chahiye.

 

allah kare zor-e-qalam aur zyada.......

 

Comment by fauzan on September 7, 2011 at 3:40pm

जाने कब के बिखर गये होते.
ग़म न होता,तो मर गये होते.............lajawab matla kaha hai aapne......zindabad 

 इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना -
सारे नासूर भर गये होते...............zabardast................

 

Comment by डॉ. नमन दत्त on July 12, 2011 at 5:53pm
शुक्रिया शशि जी....आपकी मित्रता से हमें भी प्रसन्नता हुई....
Comment by Shashi Mehra on July 12, 2011 at 10:11am
नमन जी नमन काबुल करें, ओ बी ओ पर आप के बारे में जान कर ख़ुशी हुई |
आप०के ब्लाग पर आपकी गजल पड़ी, पसंद आई, दाद व् दोस्ती काबुल करें |
मायूस नहीं होंगें |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 19, 2011 at 8:19pm

कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते

 

बहुत खूब सर , सभी शे'र उम्द्दा है , खुबसूरत ग़ज़ल पर दाद कुबूल करे |

आपकी और भी रचना तथा अन्य साथियों की रचनाओं पर आपके विचारों का इन्तजार रहेगा |

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