= ग़ज़ल =
जाने कब के बिखर गये होते.
ग़म न होता,तो मर गये होते.
काश अपने शहर में गर होते,
दिन ढले हम भी घर गये होते.
इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना -
सारे नासूर भर गये होते.
दूरियाँ उनसे जो रक्खी होतीं,
क्यूँ अबस बालो-पर गये होते.
ग़र्क़ अपनी ख़ुदी ने हमको किया,
पार वरना उतर गये होते.
कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते.
बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना
ख़्वाब बनकर बिखर गये होते.
हम भी "साबिर" के साथ, रात कभी-
ख़्वाहिशों के नगर गये होते.
Comment
कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते.
waah mere mohtaram kya sh'er kaha hai. bahut hi khoob....... maza aa gaya.
baaqi ash'ar bhi behad umda kahe haiN.
bas
बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना" ye misra kharij az bahr hai. dekh leN.
aur "रक्खी" Galati se type ho gaya hai. wahaN "rakhi" hona chahiye.
allah kare zor-e-qalam aur zyada.......
जाने कब के बिखर गये होते.
ग़म न होता,तो मर गये होते.............lajawab matla kaha hai aapne......zindabad
इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना -
सारे नासूर भर गये होते...............zabardast................
कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते
बहुत खूब सर , सभी शे'र उम्द्दा है , खुबसूरत ग़ज़ल पर दाद कुबूल करे |
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