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किसने किया तुझसे मना-गजल

२२१२ २२१२ 

किसने किया तुझसे मना

कर प्रेम की आराधना

 

चारों तरफ ही प्रेम की

मौजूद है सम्भावना

 

हों झुर्रियाँ जिस हाथ में

मौका मिले तो थामना

 

करना किसी की भी नहीं

बिन बात के आलोचना  

 

माहौल है, अब कलयुगी

होती न सच की साधना

 

कोई हँसे फुटपाथ पर

कोई महल में अनमना

 

आसान कब है जिदंगी

है मुश्किलों से सामना

"मौलिक एवं अप्रकाशित" 

@ बसंत कुमार शर्मा, जबलपुर

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Comment

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 25, 2018 at 8:48am

आदरणीय Shyam Narain Verma  जी ह्रदय से आभार आपका 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2018 at 8:27am

आ. बसंत जी,
छोटी बहर में सार्थक रचना है ..
मना से नहीं को की किया जाता   है 
.
जिस हाथ में... हों झुर्रियाँ ... ये अधिक   व्याकरणसम्मत है 
.
पुन: बधाई 

Comment by Mohammed Arif on March 25, 2018 at 7:41am

आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,

                                    बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । बिक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

Comment by Shyam Narain Verma on March 23, 2018 at 5:45pm
बहुत सुन्दर गजल।  ढेरों दाद कुबूल करें। सादर

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