For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम सरीखे बन पाये क्या-गीत

कब निकले बाहर महलों से,

वन में गीत कभी गाये क्या

पूजा करते रहे राम की,

राम सरीखे बन पाये क्या

 

भाई को कब भाई समझा,

हर विपदा में किया किनारा

दीवारों पर दीवारें चिन,

करते रहे रोज बटवारा.

 

चरण पादुका पाने उनकी,

आतुर होकर धाये क्या.

 

छुआछूत का रोग मिटाने,

चर्चाएँ तो हुईं बहुत सी

मगर शिलाएँ पड़ी हुईं हैं

जंगल में अनछुईं बहुत सी

 

झूठे बेर कभी शबरी के,

वन में जाकर खाए क्या

 

पाले-पोषे हैं खरदूषण,

रावण का संहार किया कब

राम राज्य बस रही कल्पना,

सपना यह साकार किया कब

 

त्याग तपस्या की इक मूरत,

खुद को कभी बनाये क्या.

"मौलिक एवं अप्रकाशित "

Views: 568

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 26, 2018 at 9:01pm

आदरणीय   लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 26, 2018 at 9:00pm

आदरणीय  TEJ VEER SINGH जी आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 26, 2018 at 8:49pm

आ. भाई बसंत जी, सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 26, 2018 at 8:07pm

बेहतरीन कविता आदरणीय बसंत कुमार जी। हार्दिक बधाई।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 26, 2018 at 1:07pm

आदरणीय  समर कबीर जी दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 26, 2018 at 1:07pm

आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज' जी दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by Samar kabeer on March 26, 2018 at 12:26pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी,सुंदर प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 26, 2018 at 11:07am

उत्तम बहुत ही उत्तम भाव रचना..बहुत बहुत बधाई आदरणीय

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 25, 2018 at 8:04pm

परिमार्जन उपरांत, पुनः प्रस्तुत  

कब निकले बाहर महलों से,

वन में गीत कभी गाये क्या ?

पूजा करते रहे राम की,

राम सरीखे बन पाये क्या ?

 

भाई को कब भाई समझा,

हर विपदा में किया किनारा

दीवारों पर दीवारें चिन,

करते रहे रोज बटवारा.

 

चरण पादुका पाने उनकी,

तुम आतुर होकर धाये क्या ?

 

पाले-पोषे हैं खरदूषण,

रावण का संहार किया कब

राम राज्य बस रही कल्पना,

सपना यह साकार किया कब

 

त्याग तपस्या की इक मूरत,

खुद को भी कभी बनाये क्या ?

 

छुआछूत का रोग मिटाने,

चर्चाएँ तो हुईं बहुत सी

मगर शिलाएँ पड़ी हुईं हैं

जंगल में अनछुईं बहुत सी

 

झूठे बेर कभी शबरी के,

वन में घर जाकर खाए क्या ?

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 25, 2018 at 7:58pm

आदरणीय somesh kumar जी आपका दिल से शुक्रिया 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service