सागर जैसी लहर उठी है,
दिल की धड़कन में.
छलकी है पिय याद तुम्हारी,
मेरे नयनन में
तोड़े आम साथ में जाकर,
भायी मन अमराई.
पानी पर कागज की कश्ती,
हमने खूब चलाई.
खोयी हुई अभी तक हूँ मैं,
स्मृतियों के वन में.
छत पर चाँद निरखते बीतें,
रोज अकेले रतियाँ.
सखियाँ भी ससुराल गयीं सब,
कौन करे मधु बतियाँ.
नैन थके हैं पंथ निहारत,
सूने आँगन में.
जैसे-तैसे फागुन बीता,
झेली जेठ दुपहरी.
विरह अग्नि में तपते-तपते,
पिय, मैं हुई सुनहरी.
शीतल मंद फुहारें लेकर,
आना सावन में
"मौलिक एवं अप्रकाशित "
Comment
वाह आदरणीय शर्मा जी बहुत ही खूबसूरत सरस गीत हुआ..बहुत बहुत बधाई
आदरणीया Anamika singh Ana जी आपका तहे दिल से शुक्रिया
वाह , वाह ..बहुत सुंदर
छत पर चाँद निरखते बीतें,
रोज अकेले रतियाँ.
सखियाँ भी ससुराल गयीं सब,
कौन करे मधु बतियाँ.
नैन थके हैं पंथ निहारत,
सूने आँगन में.....
विरही मन की वेदना व मिलन की गुहार लिए बहुत सुंदर गीत रचने हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए ..सादर
आदरणीय Ajay Tiwari जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय Samar kabeer जी आपका तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय बसंत जी, इस सुरीले तोहफे के लिए. हार्दिक बधाई
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत सुंदर गीत लिखा है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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