For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तब्दीले आबोहवा

तब्दीले आबोहवा

न सवाल बदला, न जवाब बदला....

न  मंज़र  न  मक़ाम  बदला

कागज़ के उड़ते चिन्दे-सा हूँ मैं

उड़ा दिया हवा ने जब-कभी

उड़ा जिधर रुख हवा ने बदला

चाह कर भी न बदल सका

न खुद को न खुदाई को मैं

हाँ, कई बार क़िर्वात  का

आदतन क़ुत्बनुमा बदला

गुज़रा जब भी तुम्हारी गली से

बेरहम बेरुखी के बावजूद भी

साँकल खटखटाई हरबार

न  आई चाहे  तुम दरवाज़े  पर

मैं  बाअदब  झुका, पढ़ी  नमाज़

दहलीज़ को तुम्हारी सलाम किया

खताकार हूँ, पूछ सकता हूँ क्या

तुमसे  एक  छोटा-सा  सवाल....

मंज़िले  मकसूद  से  पहले  ही

मेरी  दोस्त, क्या  तुम्हें  भी

ज़माने  कीे  गुस्स:वर  गूनागून

बेदर्द ज़ालिम हवा ने बदला ?

               -----

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

तबदीले आबोहवा =  जलवायु का बदलना

मंज़र                  =  दृश्य, दृष्टि का अंत

मक़ाम                =  स्थान, ठहरने की जगह

खुदाई                 = संसार, ईश्वरत्व

क़िर्वात                = नाव

क़ुत्बनुमा             = दिशा बताने वाला यंत्र

बाअदब               = शिष्टता के साथ

खताकार             =  अपराधी, पापी

मंज़िले मकसूद     =  वह स्थान जहाँ पहुँचना है

गुस्स:वर              = क्रोधी

गूनागून               = रंग-बिरंगी

Views: 786

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on April 22, 2018 at 5:46am

सराहना के लिए आपका हृदयतल से आभार, आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 19, 2018 at 6:54pm

आ.जनाब विजय निकोरे साहिब ,गज़ब की मंज़र कशी आपने रचना में की है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by vijay nikore on April 17, 2018 at 8:58pm

सराहना के लिए आपका हृदयतल से आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 15, 2018 at 12:35pm

आ. भाई विजय जी, उत्तम प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on April 14, 2018 at 12:00pm

सराहना के लिए आपका हृदयतल से आभार, आदरणीय बृजेश जी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 13, 2018 at 6:35pm

क्या कहने आदरणीय विजय जी..निशब्द हूँ..

Comment by vijay nikore on April 13, 2018 at 6:40am

सराहना के लिए आपका हृदयतल से आभार, आदरणीया नीलम जी

Comment by vijay nikore on April 13, 2018 at 6:39am

सराहना के लिए हृदयतल से आपका आभार, आदरणीय समर जी। मार्गदर्शन करते रहें। मैं उर्दु कविता लिखने में अभी नया हूँ। उर्दु से हिन्दी और उर्दु से अन्ग्रेज़ी का कोई शब्दकोश बता सकेंगे ? धन्यवाद।

Comment by vijay nikore on April 13, 2018 at 6:35am

सुन्दर प्रतिक्रिया से इस रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 12, 2018 at 12:42pm

आदरणीय विजय निकोर जी, बहुत ही बढिया रचना । प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
15 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Jul 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Jul 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service