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दुआ कर ग़म-ए-दिल, दुआ कर तू

दुआ कर ग़म-ए-दिल, दुआ कर तू

नफ़रत को नफ़रत से न देख तू,  रात भर बेकरार न हो

रुसवा  है  वह,  पर  रह्म  दिल  है  तू,  रऊफ़  है  तू 

कर दुआ  कि सोच पर उसकी,  रहमत खुदा की हो

रफ़ीक ने दी है  चोट तुम्हें, उसका  उसे  मलाल  हो

माना  कि  महकमए  इंसाफ़  से  तुम्हें

फ़कत  नाइंसाफ़ी  ही  मिली

पर इतना तो जानो कि वह मुज्रिम नहीं है

गुनहगार  भी  नहीं 

हाँ,  कुव्वत-ए-फ़िक्र  कम  है  उसमें

कैदी रहा है वह हर इनसान की मानिंद

अपनी  छोटी-सी  मुट्ठी  भर  सोच  का

जानता हूँ मैं कि आसां नहीं है कभी भी

मार-ए-सियाह-सी डसती रात में रात भर

करवट पर करवट बदलते, आहें भरते

बातिल  परस्त  को  माफ़  कर  देना

या

दुखते जिगर को सहला-सहला तसल्ली देना ...

अर्बाब-ए-अक़्ल  हो, बारबरदार  हो  तुम

दिलखराश दोस्त पर आज

तुम्हारी बारान-ए-रहमत ही हो जाए

रंज  का  तुम्हारे

रंजोअलम मुझको भी है, बस इसीलिए

अर्ज़ करता हूँ तुमसे कि इस रफ़ाकत में

दिल  को  तेरे  दुखाया  है  जिसने                   

दुआ कर ग़म-ए-दिल, दुआ कर तू

खता उसकी है, खताबख़्शी तुम्हारी सही

दुआ से अब रुह को उसकी ही नहीं

आज रूह को अपनी  रिहा कर तू

दुआ कर  गम-ए-दिल,  दुआ कर तू

                  -------

--- विजय निकोर

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

रुसवा                =   निंदित                                     रह्म दिल    = दयालु

रऊफ़               =   बहुत अधिक दया करने वाला       कुव्वत-ए-फ़िक्र = विचार-शक्ति              

दिलसखराश       =   बहुत कष्ट देने वाला                    रहमत         = करुणा

रफ़ीक               =  दोस्त                                        मलाल         = पश्चाताप

महकमए-इंसाफ़  = न्याय विभाग                              अर्बाब-ए-अक्ल = बुद्धिमान

मानिंद                = समान, तुल्य                              मार-ए-सियाह  =  काला साँप

बातिल परस्त     =  असत्यता का पालन करने वाला        

बारबरदार         =  बोझ उठाने वाला                         दिलसखराश = बहुत कष्ट देने वाला

बारान-ए-रहमत     =  लाभदायक वर्षा                        रंजोअलम     = बहुत अधिक शोक

रफ़ाकत             = मैत्री                                          खताबख़्शी    = गलती माफ़ करना                     

 

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Comment

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Comment by vijay nikore on April 18, 2018 at 11:17am

सराहना के लिए हृदयतल से आपका आभार, आदरणीया नीलम जी

Comment by vijay nikore on April 18, 2018 at 11:16am

सराहना के लिए हृदयतल से आपका आभार, आदरणीय छोटेलाल जी

Comment by Neelam Upadhyaya on April 18, 2018 at 10:44am

आदरणीय विजय निकोर जी नमस्कार । बहुत ही बढ़िया भावपूर्ण कविता हुई है । बधाई स्वीकार करें ।

Comment by vijay nikore on April 17, 2018 at 8:22pm

आदरणीय भाई समर जी, मार्ग-दर्शन के लिए और रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार।सुधार कर दिए हैं।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on April 17, 2018 at 8:13pm

आदरणीय विजय निकोर जी आपने जिस अंदाज में उर्दू शब्दों का बेहतरीन प्रयोग किया वह काबिलेतारीफ है इस भावात्मक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई

Comment by Samar kabeer on April 17, 2018 at 3:01pm

जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत उम्दा और भावपूर्ण कविता हुई है,उर्दू अल्फ़ाज़ की शमूलियत ने इसे और भी ख़ूबसूरत बना दिया है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'इंसाफी न मिली'

इस पंक्ति को यूँ कर लें "इंसाफ़ न मिला" या "नाइंसाफ़ी मिली", क्योंकि "इंसाफ़ी" कोई शब्द नहीं है ।

'माफ़ कर देना', को "मुआफ़ कर देना" कर लें ।

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