२२/२२/२२/२२/२२/२२/२२/२
.
ख़ुद को क़िस्सा-गो समझे है हर क़िरदार कहानी में
क़तरा ख़ुद को माने समुन्दर जाने किस नादानी में.
.
कैसा हिटलर कौन हलाकू, साहिब गर्मी काहे की
इक दिन सब को जाना है इतिहास की कूड़े दानी में.
.
तैर नहीं सकते थे माना लेकिन चल तो सकते थे
डूब मरे हैं कुछ बेचारे टखनों से कम पानी में.
.
जादू का इक झूठा कपड़ा पहने फिरते हैं साहिब
और ठगों की पौ-बारह है उनकी इस उर्यानी में.
.
पहले जिस के लफ्ज़ लबों के पार न आने पाते थे,
शख्स वही इक सबसे माहिर निकला तल्ख़-बयानी में.
.
देख के उन को हमने नकली ग़म का चेहरा पहन लिया,
उन की मुश्किल बढ़ जाती गर मिलते हम आसानी में.
.
याद तुम्हे मैं कर लेता हूँ जब जी घुटने लगता है,
डूब के साँसें पा जाता हूँ यादों की तुग्यानी में.
.
जानें कब होंगे वो दाना जानें कब वो समझेंगे
वस्ल की रात गुज़र जाती है उनकी आनाकानी में.
.
नूर है मंज़िल “नूर” ही राही बस रस्ता अँधियारा है,
दुनिया तुझ में यूँ रहता हूँ जैसे तेल हो पानी में.
.
पुछल्ला
दुश्मन दुश्मन चिल्लाते हैं फिर भी गले लगाते हैं
सोचो कैसा स्वाद बसा है मरियम की बिर्यानी में.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब, ये ग़ज़ल भी बहुत उम्दा और मुरस्सा हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
दूसरे शैर में 'कूड़े दानी' सही नहीं है,सही शब्द है "कूड़े दान",देखियेगा ।
4थे के सानी में 'ठगों की' को "ठगों के" कर लें,आगे 'है' को "हैं" कर लें ।
कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं :-
'क़िरदार'---"किरदार"
'टखनों'---"टख़नों"
'लफ्ज़'---"लफ़्ज़"
'शख्स'---"शख़्स"
'नकली'---"नक़ली"
'तुगयानी'---"तुग़यानी"
----
ये 'मर्यम की बिर्यानी" क्या है भाई ?
आदरणीय निलेश भाई इस ग़ज़ल को गुनगुनाकर बबड़ा आनंद आया .एक जवार्दस्त बहाव लिए उम्दा ग़ज़ल के लिए ढेरों ढेरों शुभकामनाएं सादर
क्या कहने लाजबाब प्रवाहमान गजल हुई है, बहुत बहुत मुबारकबाद आपको
धन्यवाद आ. तेजवीर सिंह जी
आपके द्वारा चिन्हित शेर का मिसरा बदल रहा हूँ..
इसे यूँ पढ़िए..
कैसा हिटलर कौन हलाकू, साहिब कैसी मग़रूरी
.
आभार
हार्दिक बधाई आदरणीय नीलेश जी।बेहतरीन गज़ल।
कैसा हिटलर कौन हलाकू, साहिब गर्मी काहे की
इक दिन सब को जाना है इतिहास की कूड़े दानी में.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online