उस दिन जन सामान्य का उत्साह देखते ही बनता था. टीवी, रेडियो, अखबार ..सब जगह नेता जी की पहल का चर्चा था. आख़िर किसी ने तो बेटी के महत्व को समझ कर बेटी बचाओ जैसा महान नारा दिया था समाज को ...
आज जब दो बेटियों के बलात्कार की और एक आठ साल की बेटी की नृशंस हत्या की ख़बर पढ़ी तो पहले पहल यह रोज़मर्रा की ख़बर ही लगी ... फिर ख़बर की डिटेल्स में पढने को मिला कि नेताजी के दल के लोग बलात्कारियों के समर्थन में सड़क पर तिरंगा लेकर वन्दे मातरम का घोष कर रहे हैं तो अचानक मन में यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि बेटी बचाओ एक नारा था या एक खुली चेतावनी...कि ..............अब हम आ गए हैं, अपनी बेटी बचाओ.
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निलेश "नूर"
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद आ डॉ आशुतोष जी
धन्यवाद आ नीलम जी
आदरणीय भाई निलेश जी एक रचना में सन्देश प्रेषित करने का जो माद्दा होना चाहिए इस रचना में है ..कम शब्दों में जबरदस्त झटका देते इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
आदरणीय नीलेश जी, बहुत ही रचना । बधाई स्वीकार करें ।
धन्यवाद आ, मोहम्मद आरिफ़ साहब,
मुझे नाहीं पता कि यह लघुकथा है या नहीं लेकिन मुझे यकीन है कि यह अपनी बात बुलंद आवाज़ में कह रही है और वही इसके होने का उद्देश्य भी है।
सादर
आदरणीय नीलेश जी आदाब,
प्रयास अच्छा है लेकिन यह लघुकथा के विधानों पर कतई खरी नहीं उतरती है । बधाई स्वीकार करें ।
धन्यवाद आ शेख शहज़ाद उस्मानी साहब
धन्यवाद आ अजय जी,
अन्य रचनाकारों की तरह रेप पीड़िता के नाम का प्रचार-प्रसार किये बिना विश्व स्तर पर सार्थक चिंतनन मनन को प्रेरित करती बेहतरीन रचना।
अंतिम भाग के लिए हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय नीलेश शेव्गांवकर साहिब।
आदरणीय निलेश जी,
इस विधा में मेरी बहुत दखल नहीं है इस लिए मैं विधागत बारीकियों में जाऊंगा भी नहीं. लेकिन बात को साहसपूर्ण और प्रभावी ढंग से कहने के लिए हार्दिक बधाई.
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