ग़ज़ल (आज फैशन है)
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लतीफ़ों में रिवाजों को भुनाना आज फैशन है,
छलावा दीन-ओ-मज़हब को बताना आज फैशन है।
ठगों ने हर तरह के रंग के चोले रखे पहने,
सुनहरे स्वप्न जन्नत के दिखाना आज फैशन है।
दबे सीने में जो शोले जमाने से रहें महफ़ूज़,
पराई आग में रोटी पकाना आज फैशन है।
कभी बेदर्द सड़कों पे न ऐ दिल दर्द को बतला,
हवा में आह-ए-मुफ़लिस को उड़ाना आज फैशन है।
रहे आबाद हरदम ही अना की बस्ती दिल पे रब,
किसी वीराँ जमीं पे हक़ जमाना आज फैशन है।
गली कूचों में बेचें ख्वाब अच्छे दिन के लीडर अब,
जहाँ मौक़ा लगे मज़मा लगाना आज फैशन है।
इबादत हुस्न की होती जहाँ थी देश भारत में,
नुमाइश हुस्न की करना कराना आज फैशन है।
नहीं उम्मीद औलादों से पालो इस जमाने में,
बड़े बूढ़ों के हक़ को बेच खाना आज फैशन है।
नहीं इतना भी गिरना चाहिए फिर से न उठ पाओ,
गिरें जो हैं उन्हें ज्यादा गिराना आज फैशन है।
तिज़ारत का नया नुस्ख़ा है लूटो जितनी मन मर्ज़ी,
'नमन' मज़बूरियों से धन कमाना आज फैशन है।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय वासुदेव जी आदाब,
बहुत ही सामयिकता का पुट लिए ग़ज़ल कही आपने । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । सादर |
जनाब बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'मज़ाक़ों में रिवाजों को भुनाना आज फैशन है'
इस मिसरे में 'मज़ाक़ों' शब्द बहुवचन है, आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि "मज़ाक़" शब्द का बहुवचन नहीं है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'मज़ाक़न ही रिवाजों को भुनाना आज फैशन है'
'रहे आबाद बस्ती-ए-अना दिल की ज़मीं पे रुब'
इस मिसरे में "बस्ती" शब्द हिन्दी भाषा का है, इसलिये इज़ाफ़त नहीं लगेगी,देखियेगा ।
'तिजारत का नया नुस्खा है लूटो जितना भी सकते'
इस मिसरे में व्याकरण दोष है,इसे यूँ कर सकते हैं :-
'तिजारत का नया नुस्ख़ा है, लूटो जितना जी चाहे'
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