समाज सेवा - लघुकथा –
दद्दू नब्बे का आंकड़ा पार कर चुके थे। पूरा परिवार शहर में बस गया था लेकिन दद्दू गाँव में अपनी पुस्तैनी हवेली में ही पड़े थे। उनकी देखभाल और तीमारदारी के लिये बड़ी बहू साथ में थी। खाने पीने से ज्यादा दद्दू की दवाईयों का ख्याल रखना पड़ता था। यूं कहो कि दद्दू दवाओं के सहारे ही जीवित थे। दद्दू की दुनियाँ एक बिस्तर पर सिमट चुकी थी।
"दद्दू, मुँह खोलो, दवा खालो"?
"बहू, अब ये दवाओं का सिलसिला खत्म कर दो। एक बार बस छुट्टन को बुलादो। उससे मिलकर अलविदा कह लें"।
"दद्दू, आपको तो मालूम ही है कि छुट्टन को इतनी फ़ुर्सत कहाँ मिलती है"?
"ऐसा क्या काम करता है छुट्टन"?
"वही खानदानी धंधा। राजनीति और समाजसेवा"।
"पर बिल्लू तो कह रहा था कि छुट्टन शहर का सबसे नामी गुंडा है"?
"अब जिसमें जितनी समझ है, वही तो बोलेगा"।
"बहू, बिल्लू एक पढ़ा लिखा,समझदार और जिम्मेदार लड़का है। शहर में बहुत बड़ा ठेकेदार है"।
"फिर किसलिये परिवार की बदनामी करते फिरते हैं"?
"वह तो यह भी बता रहा था कि छुट्टन ज़मीन जायदाद के अवैध कब्जे भी करता है। गैर कानूनी कामों की सुपाड़ी भी लेता है"?
"दद्दू, आजकल यही सब तो राजनीति और समाजसेवा के काम है"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी। आपकी सार गर्भित एवम विवेचनात्मक टिप्पणी बेहद उत्साह वर्धक है।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।आदाब। आपकी प्रेरणा दायक टिप्पणियों से सदैव मेरा मार्गदर्शन होता है। कृपा बनाये रखिये।
राजनीति में देशसेवा ,समाज सेवा के मायने बदल गये है।आज के युवा गलत कामों में लिप्त हो रहे है ।पर सच पर झूठ का आवरण कब तक चढ़ाया जा सकता है ।उम्दा कथा के लिये बधाई आद० तेजवीर सिंह जी ।
सच कहा आपने!... यही अवसरवादी नकारात्मक राजनीति और समाजसेवा कही जा सकती है न! बहुत बढ़िया उम्दा प्रस्तुति। समय रहते देशवासियों को जाग जाना चाहिए। हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब।
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