नारी का मन
न जाने कोई
जाने गर तो
न पहचाने कोई
एक पहेली बनती नारी
हास परिहास की शिकार है नारी
नव रसों में डूबी हुई
अनोखी पर सशक्त है नारी
कौन जाने कब हुआ जन्म
श्रुष्टि रचयिता में सहभागी है नारी
हर रिश्ते में बाँधा है इसको
माँ, बहन, चाची औ मासी
पूर्ण होता संसार है इससे
अर्धनारीश्वर का रूप धरा शिव ने
नारी का सम्मान बढ़ाया
युग बदला
बदली है नारी
परम्परा से आधुनिकता की राह पर
आज देखो चल पड़ी है नारी
कदम कदम पर अपमानित होती
कभी घर कभी भरी सभा में
नारी के मान को न जाने
नारी सम्मान को न पहचाने
नारी अबला नारी सबला
चाहे तो ये बजादे तबला
लास्य की जरुरत है नारी
खजुराओ की मूर्त है नारी
पहेली नही सहेली है नारी
हर युग में थी हर युग में रहेगी नारी।
मौलिक एवं अप्रकाशित्त
Comment
आदरणीया दी,नारी मन की बहुत ही सटीक शब्दों में व्याख्या.अति सुंदर,प्रस्तुत रचना पर बधाई.
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