ममता का सागर,प्यार का वरदान हैं माँ,
जिसका सब्र और समर्पण होता हैं अनन्त,
सौभाग्य उसका,बेटा-बेटी की जन्मदात्री कहलाना,
माँ बनते ही,सुखद भविष्य का बुनती वो सपना,
इसी 'उधेड़बुन'में,कब बाल पक गये,
लरजते हाथ,झुकी कमर.सहारा तलाशती बूढ़ी आँखे,
अंगुली पकडकर,गिरकर उठना सिखाया,जिसको,
वही अंगुली,कब हाथ से फिसल गई........
जिन्दगी का लम्बा पडाव,पलक झपकते गुजर गया??????
इच्छाओं का दमन कर,बच्चों का जीवन संबारती ,
वेपरवाह,धूप-लपट में ,तावड़-तोड़,दुनियाँ जहां से दूर,
एक पैर पर दौड़-दौड़,बच्चों को लायक बनाया,
टीस होती मन के किसी कोने में.......
अफ़सोस!!परवरिश में ऐसा क्या हुआ??????
दिन-रात माँ की रट लगाने वाला,
किस माया के अधीन हो गया?????
तिनका-तिनका बटोरकर,सर ढकने को छत्त दी...
आज उसी को दर-दर की ठोकरे खाने को छोड़ दिया.....
खुद से पहले निवाला खिलाया,उसको ही पेट भरने को तरसा दिया......
मन सालता हैं,तुझसे माँ का दर्द कैसे अनजान रहा....
तू मुझसे जाना जाता था,उसी को आज गुमनाम कर दिया.....
सबसे बड़ी सेवा 'माता-पिता की सेवा',
इंसानियत का सबक कैसे भूल गया???????
शायद.....मैं ही कसूरवार हूँ तुम्हारी,
तुम्हें तो जमाने के लायक बना दिया,पर स्वयं न बन सकी....
और हां,सपनों की लड़ी में,अपने'इस भविष्य का मनका' पिरोना भूल गई....
खैर...तो,बस ,गुजारिश इतनी सी हैं कि....
तुम्हारे 'संवेदनहीन ह्रदय' में,कभी 'ममत्व का स्पंदन' हो जाए...
भूली-बिसरी,विस्म्रत यादों में,माँ...की झलक दिख जाए...
तो बस,बेवश माँ की फरियाद जरूर सुन लेना,
दुनिया बदलती हैं,माँ नही बदलती,
सो,चकाचौंध की दुनिया में,माँ को 'ममी'[मृत]मत बनने देना.
रचना मौलिक व अप्रकाशित हैं.
बबीता गुप्ता
Comment
आदरणीया बबीता गुप्ता जी आदाब,
लाजवाब और विचारोत्तेजक रचना । मैं आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी की बातों से सहमत हूँ । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
रचना की सराहना करने के लिए आप सभी का सधन्यवाद. सुधारात्मक दिए गए सुझावों का ध्यान रखूगी
मोहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
जनाब सुशील सरना जी की बात का संज्ञान लें ।
आदरणीय बबिता जी सुंदर और भावपूर्ण सृजन का प्रस्तुतीकरण हुआ है। एक चुभता हुआ यथार्थ है। जमाने की हवा कहें, परवरिश का दोष कहें, या सवेदनहीनता का चरम कहें ... कुछ भी कहें लेकिन ये स्थिति है दुर्भागयपूर्ण। ... इस रचना के लिए हार्दिक बधाई और हाँ आदरणीया बबिता जी सृजन में कहीं कहीं शाब्दिक दोष के कारण प्रवाह बाधित होता है , कृपया देख लें। सादर ...
बेहतरीन भावपूर्ण विचारोत्तेजक अभिव्यक्ति। सादर हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता जी। इसे किसी मनचाहे काव्य-छंद में भी पिरोने का प्रयास भी किया जा सकता है। यहां ओबीओ साहित्यिक फाइलों का अध्ययन किया जा सकता है।
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