डिजिटल ग़ुलामी है बहुआयामी
शारीरिक नुमाइश हुई बहुआयामी
हैरत है, कहें किसको नामी और नाकामी
अनपढ़, ग़रीब, शिक्षित या असामी।
योग ग़ज़ब के हो रहे वैश्वीकरण में
मकड़जाले छाते रहे सशक्तिकरण में
छाले पड़े आहारनलिकाओं में
ताले संस्कृति और संस्कारों में
अधोगति, पतन सतत् रहे बहुआयामी
हैरत है, कहें किसमें खामी और नाकामी
अनपढ़, ग़रीब, शिक्षित या असामी।
शिक्षा, भिक्षा, रक्षा सभी बहुआयामी
लेन-देन, करता-धरता, कर्ज़दाता भी बहुआयामी
आज़ादी, तानाशाही, राजनीति बदलें परिभाषायें
आशायें-निराशायें छायीं बहुआयामी
हैरत है, कहें किसको दानी और दामी
अनपढ़, ग़रीब, शिक्षित या असामी।
डिजिटल ग़ुलामी है बहुआयामी
योग, भोग और खेल बहुआयामी
हैरत है, कहें किसको नामी और नाकामी
अनपढ़, ग़रीब, शिक्षित या असामी।
डिजिटल ग़ुलामी है बहुआयामी
भत्ता-सत्ता-नुमाइश हुई बहुआयामी
हैरत है, कहें किसको नामी और नाकामी
अनपढ़, ग़रीब, शिक्षित या असामी।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
डिजिटल गुलामी है बहु आयामी ...वाह्ह्ह्ह बहुत अच्छी सार्थक रचना बहुत बहुत बधाई आद० उस्मानी जी
बहुत ही बढ़िया। बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
डिज़िटल आँधी ने सबकुछ तहस-नहस करके रख दिया है । हम सबकुछ भूल गए हैं । आपकी अबतक की सबसे अच्छी अतुकांत कविता । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
वाह बेहद खूबसूरत प्रस्तुति … हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय। |
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