"बिटिया, कितनी बार कहा है कि अॉनलाइन शॉपिंग वग़ैरह के अॉफरों और प्रलोभनों में अपना समय और पैसा यूं मत ख़र्च करो!" अशासकीय शिक्षक ने अपनी कमाऊ शादी योग्य बेटी से कहा ही था कि उनकी पत्नी बीच में टपकीं और बोलीं- "तुम अपने काम से काम रखो। बिटिया तुम से ज़्यादा कमा कर अपने दम पर अपना दहेज़ जोड़ रही है और पैसे भी! ... और रिश्ता भी!"
"आप लोग यूं परेशान न हों! ...मम्मी तुम्हें पापा से इस तरह नहीं बोलना चाहिए। मुझे पता है प्राइवेट नौकरी में क्या-क्या और कैसे सब कर पाते हैं!" बिटिया ने अपना स्मार्ट फोन अॉफ़ करते हुए कहा- "मुझे पता है कि पापा बहुत क़ाबिल और आदर्शवादी होते हुए भी आज के ज़माने और नेट-बैंकिंग वग़ैरह से कैसे तालमेल बिठा पा रहे हैं घर-गृहस्थी के साथ!"
बिटिया के मम्मी-पापा आशा भरी निगाहों से अपनी बिटिया की ओर देखने लगे।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय उस्मानी जी, नमस्कार। आज के समय से सामंजस्य बिठाती अच्छी लघु कथा। बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय सर जी. आज के बच्चों और माता पिता के आपसी सोच मे सामंजस्य दर्शाती बहुत ही अच्छी लघु कथा है । प्रकाशित रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा ।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
अत्यंत सामयिक-प्रासंगिक लघुकथा । कथा में जीवंतता भी है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
ठीक ठाक ही लगी यह लघुकथा आपकी आदरणीय शहजाद उस्मानी जी | सादर|
जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आ दाब , समाज को आइना दिखाती उम्दा लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |
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