यूँ दुपट्टा बहुत उड़ा कोई ।
जाने कैसी चली हवा कोई ।।
उम्र भर हुस्न की सियासत से ।
बे मुरव्वत छला गया कोई ।।
याद उसकी चुभा गयी नस्तर ।
दर्द से रात भर जगा कोई।।
ख़्वाहिशें इस क़दर थीं बेक़ाबू ।
फिर नज़र से उतर गया कोई ।।
वो सँवर कर गली से निकला है ।
ढूढ़ता है जो हमनवा कोई ।।
प्यार पहला ज़रूर था उसका ।
मुद्दतों बाद तक मिला कोई ।।
इस तरह बेनक़ाब निकलें मत ।
हो रहा आप पर फ़िदा कोई ।।
लोग गिरने पे मुस्कुराते हैं ।
रह गयी अब कहाँ हया कोई ।।
टूटने का था इंतज़ार उन्हें ।
सांस देकर गयी दुआ कोई ।।
यूँ तसव्वुर में डूबकर शब भर ।
नज़्म में आपको लिखा कोई ।।
हुस्न पर छा रही अना तब से ।
जब से देखा है आइना कोई ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
एक से बढ़कर एक शेर , आनंद आ गया आदरणीय, बहुत बहुत बधाई आपको
हार्दिक आभार आ0 श्याम नारायण वर्मा जी
बहुत खूब , पूरी ग़ज़ल बहुत उम्दा है , बहुत बहुत बधाई, सादर , |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online