मुद्दतों बाद जब देखा उन्हें तो,
कुछ हुआ ऐसा-
जो रखने राज थे,
उनका भी हम इज़हार कर बैठे।।
तमाम उम्र से ज़ुल्मत भरी,
आँखों में थी लेकिन-
वो होकर रूबरू,
दीदा-ए-नम बेदार कर बैठे।।
अभी तक जो किया करते थे,
बस तक्ज़ीब उल्फत को-
पशेमाँ हो गये अब,
वो जो हमसे प्यार कर बैठे ।।
मुसलसल खुद हमें ताका किये,
वो शोख नज़रों से-
जो खोले लव,
फकत एक बोस पर तकरार बैठे ।।
बेसबब तोहबतें हम पर लगाकर,
हो गये सादिक-
मुक़द्दस इश्क का,
इग्माज सरे आम कर बैठे।।
कहीं हर्बा छुपाया था,
कि वो नश्तर भी लाये थे-
हमें मालूमहुआ,जब वो-
जिगर के पास कर बैठे ।।
बारहा हम ही तलबगार थे,
- उस चाँद पर जायें,
मिलाके अर्श से हमको-
गजब वो यार कर बैठे ।।
( मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय विजय जी नमस्कार, आपकी शिर्कत और रचना पर प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से शुक्रिया ।
अति सुन्दर रचना ! हार्दिक बधाई, रक्षिता जी।
आदरणीय महेन्द्र जी नमस्कार, गजल पसंद करने के लिए शुक्रिया ...लिखना सार्थक हुआ।
अच्छी भावाभिव्यक्ति है आदरणीया रक्षिता जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आदरणीया नीलम जी, नमस्कार।
हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया ।
आदरणीया रक्षिता जी, नमस्कार । खूबसूरत रचना के लिए बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय मोहित जी नमस्कार,
गजल में आपकी शिर्कत के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ " हमें बस प्रीत है लिखना हमें बस प्यार है भरना"।।
आदरणीय आरिफ जी , नमस्कार !
बहुत ही खूबसूरत शब्दों में प्रतिक्रिया दी आपने।
बहुत बहुत धन्यवाद !
अपने पिछले पोस्ट पर मैंने आपकी प्रतिक्रिया पर उत्तर दिया था, वो मुझे लेटेस्ट एक्टीविटी में नजर क्यों नहीं आ रहा?
आदरणीया रक्षिता जी आदाब,
प्रेम का एक और धमाका कर बैठे
घर बार हम भी जला बैठे
राज़ सारे ज़माने को बता बैठे
बैठे ठाले एक रोग लगा बैठे
अभी-अभी तो जीना सीखा है
ये कौन सी दीवानगी कर बैठे
देखो, बारिश का सिलसिला शुरू हो गया
अभी से सावन की रट लगा बैठे
क्या इतना भी बुरा है ज़माना
हम फिर ज़माने से बग़ावत कर बैठे
इतना आसाँ नहीं किसी को अपना बनाना
लेकिन हम नादाँ उसे अपना समझ बैठे
हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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