बड़ी खामोशी से वो कर रहें हैं गुफ्तगू
मगर सब सुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
मोहब्बत के खिलें हैं फूल जिनके दर्मियाँ
वो काँटे चुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
यूँ शब भर जागकर सौदाई बन तन्हाई का
गलीचा बुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
किये हैं ज़ब्त, वादों में जो रिश्ते प्यार के
वो रिश्ते घुन रहें हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
वो हमसे पूंछते हैं इश्क करने की वज़ह
मोहब्बत बेवज़ह है ये उन्हें मालूम नहीं…
Added by रक्षिता सिंह on February 18, 2019 at 9:49am — 2 Comments
अल्फाज़ रूठें हैं -
छोटे बच्चों की तरह,
मेरी शायरी पर -
अपने पैर पटक रहे हैं,
बहुत अरसे के बाद -
आया हूँ मिलने इनसे,
यकीनन इसलिए-
रूठे हैं मुझसे कट रहे हैं !!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by रक्षिता सिंह on February 8, 2019 at 10:25am — 4 Comments
तेरी मीठी बातों से ही
भरता मेरा पेट प्रिय,
जिस दिन तू गुमसुम रहती है-
भूखा मैं सो जाता हूँ !!
मैखाना, ये आँखें तेरी
पीने दे मत रोक प्रिय,
जब जब ये छलका करती हैं-
और बहक मैं जाता हूँ !!
रहता हूँ तेरे दिल में मैं
बनकर तेरा दास प्रिय,
जब भी टूटा है दिल तेरा-
तब मैं बेघर हो जाता हूँ !!
मदहोश सा कुछ हो जाता हूँ
जब होती हो तुम साथ प्रिय,
छू कर निकलूँ जो लव तेरे तो-
ज़ुल्फ़ों में खो जाता हूँ…
Added by रक्षिता सिंह on January 3, 2019 at 6:41pm — 4 Comments
अश्रु भरे नैन,
नाहीं आवे मोहे चैन
कैसे कटें दिन रैन,
इस विरहा की मारी के...
मन में समायो है,
ये जसुदा को जायो
कोई ले चलो री गाम मोहे,
कृष्ण मुरारी के...
कर गयो टोना,
नंनबाबा को ये छोना
देख सांवरो सलौना,
गाऊँ गीत मल्हारी के...
व्याकुल सो मन
अकुलाये से नयन
बिन धीरज धरें ना
चितवन को निहारि के...
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by रक्षिता सिंह on August 19, 2018 at 8:58pm — 11 Comments
जरा ज़ुल्फें हटाओ चाँद का दीदार मैं कर लूँ !
बस्ल की रात है तुमसे जरा सा प्यार मैं कर लूँ !!
बड़ी शोखी लिए बैठा हूँ यूँ तो अपने दामन में !
इजाजत हो अगरतो इनको हदके पार मैंकरलूँ!!
मुआलिज है तू दर्दे दिल का ये अग़यार कहते हैं!
हरीमे यार में खुद को जरा बीमार मैं कर लूँ !!
यूँ ही बैठे रहें इकदूजे के आगोश में शबभर !
जमाना देख ना पाये कोई दीवार मैं कर लूँ !!
तुझे लेकर के बाहों में लब-ए-शीरीं को मैं चूमूँ !
कि होके बेगरज़ अब इकनहीं…
Added by रक्षिता सिंह on June 28, 2018 at 3:16pm — 11 Comments
इक आवारा तितली सी मैं
उड़ती फिरती थी सड़कों पे...
दौड़ा करती थी राहों पे
इक चंचल हिरनी के जैसे ...
इक कदम यहाँ इक कदम वहाँ
बेपरवाह घूमा करती थी...
कर उछल कूद ऊँचे वृक्षों के
पत्ते चूमा करती थी...
चलते चलते यूँ ही लब पर
जो गीत मधुर आ जाता था...
बदरंग हवाओं में जैसे
सुख का मंजर छा जाता था...
बीते पल की यादों से फिर
मैं मन ही मन भरमाती थी...
इठलाती थी बलखाती थी
लहराती फिर…
Added by रक्षिता सिंह on June 21, 2018 at 11:30pm — 16 Comments
तपती धूप,
जर्जर शरीर,
फुटपाथ का किनारा,
बदन पर पसीना,
किसी के आने के इन्तजार में...
पथराई सी आँखें,
घुटनों पर मुँह रखे-
एक टक, एक ही दिशा में देख रही थीं...
- ना जाने कब से?
यूँ तो सामने दो छतरी पड़ी थीं, पर
कड़ी धूप में जल-जल के,
बदन काला पड़ गया था ....
रंग बिरंगे रूमाल -
सजे तो बहुत थे, पर
जिस्म पसीने में लथपथ था....
सफेद बाल,
तजुर्बों की गबाही दे रहे थे....
जिस्म पर लटकती खाल…
Added by रक्षिता सिंह on June 19, 2018 at 6:30am — 11 Comments
मैं संग चल दी उनके,
मेरा मन यहीं रह गया...
उन्होंने दिखाये होंगे हजारों ख्वाब,
पर इन आँखों में रौशनी कहाँ थी !!
कितने ही गीत सुनाये होंगे उन्होंने,
पर इन कानों के पट तो बंद हो चुके थे !!
उनके सबालों का,
जबाब भी ना दे पायी थी मैं....
क्योंकी इन होठों पे, तुम्हारा ही नाम रखा था!!
कितना आक्रोश था उनके ह्रदय में,
जब उन्होंने,
मेरे केशों को पकड़कर खींचा था...
और मैं पत्थर सी हो गयी थी,
किसी भी आघात की पीड़ा ना हुई…
Added by रक्षिता सिंह on June 15, 2018 at 5:12pm — 10 Comments
बड़े ही तैश में आकर'
उसने मेरे खत लौटा दिये...
वो अँगूठी !
वो अँगूठी भी उतार फेंकी-
जिसे आजीवन,
पास रखने का वादा किया था उसने!
कभी ईश्वर को साक्षी मानकर-
एक काला धागा,
पहनाया था उसने मुझे-
"अब तुम मेरी हो चुकी हो "
फिर ये कहकर,
बाहों मे भर लिया था...
आज,फर्श पर कुछ मोती-
औंधे पड़े हैं....
उस काले धागे के साथ !
एक तस्वीर थी जो,
साथ में -
आज उसे भी,
माँग बैठा था…
Added by रक्षिता सिंह on June 11, 2018 at 7:45am — 12 Comments
मुद्दतों बाद जब देखा उन्हें तो,
कुछ हुआ ऐसा-
जो रखने राज थे,
उनका भी हम इज़हार कर बैठे।।
तमाम उम्र से ज़ुल्मत भरी,
आँखों में थी लेकिन-
वो होकर रूबरू,
दीदा-ए-नम बेदार कर बैठे।।
अभी तक जो किया करते थे,
बस तक्ज़ीब उल्फत को-
पशेमाँ हो गये अब,
वो जो हमसे प्यार कर बैठे ।।
मुसलसल खुद हमें ताका किये,
वो शोख नज़रों से-
जो खोले लव,
फकत एक बोस पर तकरार बैठे ।।
बेसबब तोहबतें हम पर लगाकर,
हो गये…
Added by रक्षिता सिंह on June 7, 2018 at 2:18pm — 9 Comments
इन आँसुओं का कर्ज चुकाने आजा,
बिखरी हूँ मैं यूँ टूटकर उठाने आजा...
दिल से लगाके मुझको, यूँ न दूर कर तू
इक बार फिर तू मुझको सताने आजा....
अब लौट आ तू फिर से, इश्क की गली में
करके गया जो वादे निभाने आजा...
जो वेबजह है दर्मियाँ, उसको भुला दे
इक बार फिर से दिल को चुराने आजा...
सोती नहीं अब रात भर, तेरी फिकर में
इक चैन की तू नींद सुलाने आजा...
थमने लगीं साँसे मेरी, तेरे बिना अब
अरमान है तू दिल से लगाने…
Added by रक्षिता सिंह on June 6, 2018 at 12:39pm — 8 Comments
तुम्हारे इश्क ने मुझको,
क्या क्या बना दिया...
कभी आशिक,कभी पागल-
कभी शायर बना दिया।।
अब इतने नाम हैं मेरे,
कि मैं खुद भूल जाता हूँ...
कोई कुछ भी पुकारे मुझको-
मैं बस मुस्कुराता हूँ।।
मेरी माँ कहती है मुझसे,
दिवाना हो गया है तू....
मगर इक तू ही न समझे-
कि मैं तेरा दिवाना हूँ।।
अगर तुझको भी है चाहत,
तो क्यों इनकार करती है?
तेरी आँखों से लगता है-
कि तू भी प्यार करती है।।
खुदा…
ContinueAdded by रक्षिता सिंह on February 18, 2018 at 12:00pm — 8 Comments
डर लगता है दुनिया से
और घर वालों के तानों से,
और कभी डर जाती हूँ मैं
प्यार के इन अफसानों से।।
कितनी मुश्किल आती है
और कितने ही गम सहते हैं,
लाखों कोशिश कर लें-
फिर भी तन्हा ही हम रहते हैं।।
रहता कुछ भी याद नहीं
जब याद किसी की आती है,
प्रेस से कपड़े जलते हैं-
काॅफी फीकी रह जाती है।।
माँ भी गुस्सा करती है
और बापू भी चिल्लाते हैं,
मगर किसी को इस दिल के
हालात समझ ना…
ContinueAdded by रक्षिता सिंह on February 4, 2018 at 5:00pm — 10 Comments
हर वक्त ,
दिल -ओ- दिमाग में,
एक बहस सी छिड़ी रहती है-
कितना लड़ते हैं, दोनों आपस में-
कुछ पल के लिए, एक हो भी जाते हैं
मगर फिर अगले ही पल
" मैदान -ए- जंग" ।
और मैं !
एक निहत्थे प्यादे (सैनिक) की तरह ,
जो जीता -
उसी की तरफ।।
( मौलिक व अप्रकाशित)
Added by रक्षिता सिंह on January 29, 2018 at 10:38am — 4 Comments
सर पे मेरे इश्क का इल्जाम है,
और दिल का टूट जाना आम है।
हुस्न दौलत इश्क सब बेदाम है,
इसके आगे बस खुदा का नाम है।
दफ़्अतन यूँ जा रहे हो छोड़कर,
क्या तुम्हें कोई जरूरी काम है ?
ठहरो भी बैठे रहो आगोश में,
पीने दो आँखों से, ये जो जाम है।
यूँ ना देखो बेरुखी से अब हमें,
दिल ये तेरे इश्क में बदनाम है।
चल दिए यूँ छोड़ कर दामन मेरा,
क्या यही मेरी वफ़ा का दाम है।
हम तो समझे थे जिसे सबसे जुदा…
Added by रक्षिता सिंह on December 23, 2017 at 9:21pm — 4 Comments
Added by रक्षिता सिंह on November 24, 2017 at 5:34am — 8 Comments
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