सर पे मेरे इश्क का इल्जाम है,
और दिल का टूट जाना आम है।
हुस्न दौलत इश्क सब बेदाम है,
इसके आगे बस खुदा का नाम है।
दफ़्अतन यूँ जा रहे हो छोड़कर,
क्या तुम्हें कोई जरूरी काम है ?
ठहरो भी बैठे रहो आगोश में,
पीने दो आँखों से, ये जो जाम है।
यूँ ना देखो बेरुखी से अब हमें,
दिल ये तेरे इश्क में बदनाम है।
चल दिए यूँ छोड़ कर दामन मेरा,
क्या यही मेरी वफ़ा का दाम है।
हम तो समझे थे जिसे सबसे जुदा
पर उसे भी काम से ही काम है।
कर चुके रुखसत तेरी यादों को हम
अब कहीं जाकरके कुछ आराम है।
सोजिशे दिल और इंसान गमजदः
इश्क का तो बस यही अंजाम है।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
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