2122 1212 22
नाम दिल से तेरा हटा क्या है ।
पूछते लोग माजरा क्या है ।।
नफ़रतें और बेसबब दंगे ।
आपने मुल्क को दिया क्या है ।।
अब तो कुर्सी का जिक्र मत करिए ।
आपकी बात में रखा क्या है ।।
सब उमीदें उड़ीं हवाओं में ।
अब तलक आप से मिला क्या है ।।
है गुजारिश कि आज कहिये तो ।
आपके दिल में और क्या क्या है ।।
दिल की बस्ती तबाह कर डाली ।
क्या बताऊँ तेरी ख़ता क्या है ।।
बारहा हाल पूँछ मत मेरा ।
मुद्दतों से यहाँ नया क्या है ।।
यूँ मुकरते हो रोज वादों से ।
आँख में भी बची हया क्या है ।।
गिर गए आप वोट की खातिर ।
आपकी शाख़ में बचा क्या है ।।
ख़ुदकुशी कर रहे वो पढ़ लिखकर ।
रोज़ियों पर तेरी रज़ा क्या है ।।
--- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 गुमनाम पिथौरा गढ़ी जी हार्दिक आभार
आप नीलम उपाध्याय जी सादर आभार
आदरणीय नवीन मणि जी, नमस्कार। खूबसूरत ग़ज़ल हुई है। मुबारकबाद कुबूल करें।
मुझे भी ओबीओ के बग़ैर चैन कहाँ था ।
आ0 तपन दुबे जी हार्दिक आभार
आ0 बसंत कुमार शर्मा जी सादर आभार
आ0 गुमनाम पिथौरा गढ़ी साहब सादर आभार
आ0 रक्षिता सिंह जी सादर आभार
आ0 गुरदेव कबीर सर को नमन । आपके बगैर 1 महीने ओबीओ में कैसे गुजरा यह तो मेरा दिल जनता है । आपकी कमी बहुत खली ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, 'ग़ालिब' की ज़मीन मेंअच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
'नाम दिल से तेरा हटा क्या है'
इस मिसरे में 'हटा' की जगह "मिटा" कर दें तो मतले का प्रभाव बढ़ जायेगा ।
'आपने मुल्क को दिया क्या है'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है ' मुल्क को',मुल्क की जगह "देश" कर सकते हैं ।
सातवें के ऊला में 'पूँछ' को "पूछ" कर लें ।
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