2122 1122 1122 22
दे गया दर्द कोई साथ निभाने वाला ।
याद आएगा बहुत रूठ के जाने वाला ।।
जाने कैसा है हुनर ज़ख्म नया देता है ।
खूब शातिर है कोई तीर चलाने वाला ।।
उम्र पे ढल ही गयी मैकशी की बेताबी ।
अब तो मिलता ही नहीं पीने पिलाने वाला ।।
अब मुहब्बत पे यकीं कौन करेग़ा साहब ।
यार मिलता है यहां भूँख मिटाने वाला ।।
उसके चेहरे की ये खामोश अदा कहती है ।
कोई तूफ़ान बहुत जोर से आने वाला ।।
गम भी खाना है इबादत खुदा की दुनिया में ।
हार जाएगा कभी जुल्म को ढाने वाला ।।
हर कदम पर है यहां मौत का जलवा यारों ।
ढूढ़ लेता है मुझे रोज बचाने वाला ।।
दुश्मनी गर हो सलामत तो सुकूँ मिल जाए ।
लूट जाता है मुझे हाथ मिलाने वाला ।।
कुछ तबस्सुम से तबाही का इरादा लेकर ।
रोज मिलता है मिरे दिल को जलाने वाला ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
उम्दा ग़ज़ल कही है आदरणीय त्रिपाठी जी...
आ0 कबीर सर सादर आभार । गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांत से प्रेरित होकर छठा शेर लिखा था । महत्व पूर्ण इस्लाह हेतु विशेष आभार । ग़ज़ल को ठीक करता हूँ।
आ0 नीलम उपाध्याय जी सादर आभार ।
आदरणीय नवीन मणि जी, नमस्कार। बहुत ही उम्दा ग़ज़ल की प्रस्तुति । दिल से मुबारकबाद ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
तीसरे शैर का ऊला मिसरा शिल्प की दृष्टि से कमज़ोर है, बदलने का प्रयास करें ।
4थे के सानी में 'भूँख' को "भूख" कर लें ।
'कोई तूफ़ान बहुत ज़ोर से आने वाला'
इस मिसरे को यूँ कर लें तो भाव स्पष्ट हो जायेगा:-
'कोई तूफ़ाँ है बहुत ज़ोर से आने वाला'
छटे शैर का भाव ठीक नहीं,ज़ुल्म करने वाला और सहने वाला दोनों ही दोषी होते हैं ।
उम्दा गज़ल के लिए ढेरों मुबारकबाद .... |
वाह बहुत खूब,,,, अब मुहब्बत पे ,,,,वाह
आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार ।
आ0 बसंत कुमार शर्मा जी सप्रेम आभार ।
वाह बहुत खूबसूरत गजल हुई है आदरणीय
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