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वो शख्स क्यूँ मुस्कुरा रहा था ।
जो मुद्दतों से ख़फ़ा रहा था ।।
वो चुपके चुपके नये हुनर से ।
सही निशाना लगा रहा था ।।
अदाएँ क़ातिल निगाह पैनी।
जो तीर दिल पर चला रहा था ।।
तबाह करने को मेरी हस्ती ।
कोई इरादा बना रहा था ।।
मुग़ालता है उसे यकीनन ।
नया फ़साना सुना रहा था ।।
बदलते चेहरे का रंग कुछ तो ।
तुम्हारा मक़सद बता रहा था ।।
ज़माना गुज़रा है उसको देखे।
जो ख्वाब अब तक सता रहा था ।।
बला की सूरत सियाह जुल्फें ।
वो रुख से पर्दा हटा रहा था ।।
बिखेर कर लब पे यूँ तबस्सुम ।
तमाम ग़म तू छुपा रहा था ।।
हवा की ख़ुशबू बता रही थी ।
कोई पदुपट्टा उड़ा रहा था ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ. भाई नवीन जी, बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
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