जनाब बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल "ख़ुदा मुझको ऐसी ख़ुदाई न दे" की ज़मीन पे लिखी ये ग़ज़ल.
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ख़ुदा ग़र तू ग़म से रिहाई न दे
तो साँसों की मीठी दवाई न दे
भले अपनी सारी ख़ुदाई न दे
किसी को भी माँ की जुदाई न दे
मैं मर जाऊँ मिट जाऊँ हो जाऊँ ख़ाक़
मगर मुझको ख़ू ए गदाई न दे
तू रख सब असागिर को दुख से अलग
तू कोई भी ग़म इज्तिमाई न दे
निसाबे अमल से तू कर सब हिसाब
तू ज़िल्लत कोई बिन बुलाई न दे
तू ख़ुद भी है मख़फ़ी हमारी नज़र
हैं नाबीने हम रहनुमाई न दे
शबे वस्ल ग़र तू दे सकता नहीं
ख्यालों में उनसे जुदाई न दे
कहीं कुछ नया हो, कहीं कुछ अलग
तू हस्ती ये लिक्खी लिखाई न दे
अगरचे ख़मोशी में है तू निहाँ
मुझे तू मगर लबकुशाई न दे
है कारेमजाज़ी में शिरकत तेरी
गुनहगार है तू सफ़ाई न दे
ख़ुदा है, तू ख़ालिक़ है संसार का
तू बंदों को अपनी दुहाई न दे
ये माना कि खिस्सत से जी लूँगा मैं
मगर क्या कि कुछ भी कमाई न दे
मेरा दुख किसी पे भी ज़ाहिर न हो
ग़मे दिल को जलवानुमाई न दे
न जूता न चप्पल न मरहम नसीब
मेरे पाँव को तो बिवाई न दे
मैं ग़ैरों के दुख में पिघलता रहूँ
मेरे दिल में इतनी भलाई न दे
है जी चाहता है कि बेख़ुद रहूँ
सुनाई न दे कुछ, दिखाई न दे
मैं ख़ुद ढूँढ लूँगा ठिकाना मेरा
मुझे रहगुज़र आज़माई न दे
है आरिज़ पे तेरे निशाने रक़ीब
मुझे कुछ न कह, कुछ सफ़ाई न दे
उन्हें कर तू पर्दानशीनी अता
अगर राज़ को पारसाई न दे
और आख़िर में मज़ाहिया-
जो हर लम्हा एफ़बी में डूबी रहे
किसी को भी ऐसी लुगाई न दे
~राज़ नवादवी
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
जी हाँ ।
आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत का तहेदिल से शुक्रिया. आपकी इस्लाह का ह्रदय से आभार. आपके कहे के मुताबिक ये शेर हटा दूँ?
कहीं कुछ नया हो, कहीं कुछ अलग
तू हस्ती ये लिक्खी लिखाई न दे 8
है कारेमजाज़ी में शिरकत तेरी
गुनहगार है तू सफ़ाई न दे 10
ख़ुदा है, तू ख़ालिक़ है संसार का
तू बंदों को अपनी दुहाई न दे 11
ये माना कि खिस्सत से जी लूँगा मैं
मगर क्या कि कुछ भी कमाई न दे 12
न जूता न चप्पल न मरहम नसीब
मेरे पाँव को तो बिवाई न दे 14
सादर
आदरणीया नीलम उपाध्याय जी, आपका ह्रदय से आभार, आपकी सुखन नवाज़ी का दिल से शुक्रिया.
आदरणीय राज नवादवी साहब , नमस्कार । बढ़िया ग़ज़ल की पेशकश के लिए मुबारकबाद ।
जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,बशीर बद्र साहिब की ज़मीन में अच्छी ग़ज़ल कही है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।
कुछ अशआर के दोनों मिसरों में 'तू' शब्द खटकता है, उनमें एक मिसरे से 'तू' शब्द निकालने का प्रयास करें ।
छटे शेर में 'नाबीने' को "नाबीना" कर लें ।
8,10,11,12,14 ये अशआर भर्ती के हैं, इन्हें हटा दें ।
मज़हिया शैर भी हटा दें ।
जब तवील ग़ज़ल कहें तो अशआर के साथ नम्बर भी डाल दिया करें ।
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