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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६१

2122 1122 1122 112/22

--------------------------------

जिसको भी चाहा मुहब्बत में हमारा न हुआ
दिल हमारा किसी सूरत भी गवारा न हुआ //1

मेरे क़िरदार में पाने की लियाक़त नहीं थी 
मुझपे जो फैज इनायत का दुबारा न हुआ //2

आज फिर बाम पे छाई थी अमावस काली 
आज फिर बिन्ते अशीयत का नज़ारा न हुआ //3

है जईफी तो सताती है हमें तन्हाई 
जब जवाँ थे तो मुहब्बत का इशारा न हुआ //4

मौजें उठतीं है मगर रोक लेता है साहिल 
दोस्त दरिया का कभी उसका किनारा न हुआ //5 

 

जाने क्या दिल में कमी थी कि भटकते ही रहे 

जिस ठिये पर भी गए वाँ पे गुज़ारा न हुआ //6

 

नस्ले फ़रदा ये बतायेगी बड़ी हैरत से

राज़ के जैसा कोई दर्द का मारा न हुआ //7

~राज़ नवादवी 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment by राज़ नवादवी on October 17, 2018 at 11:28am

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. इस्लाह का बहुत बहुत शुक्रिया. अमल में लाता हूँ. बिन्ते अशीयत- रात की बेटी, मैंने चाँद से अर्थ लिया है. सादर 

Comment by Samar kabeer on October 15, 2018 at 11:17pm

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।


'जिसको भी चाहा मुहब्बत में हमारा न हुआ
दिल मेरा क्यों किसी सूरत भी गवारा न हुआ'

मतले में शुतरगुर्बा दोष है,सानी मिसरा यों करें तो ये ऐब निकल जायेगा:-

"दिल हमारा क्यों किसी तौर गवारा न हुआ'

'आज फिर बिन्ते अशीयतका नज़ारा न हुआ '

इस मिसरे में "बिन्ते अशीयत" का क्या अर्थ है?

'अब बुढ़ापे में सताती है मुझे तन्हाई
जब जवाँ थे तो मुहब्बत का इशारा न हुआ'

इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है और शैर में शुतरगुर्बा दोष है,देखिये ।

मुझको मालूम है क्यों झोली मेरी है ख़ाली
मेरी किस्मत में कोई टूटता तारा न हुआ--इस शैर में क्या कहना चाहते हैं?

जाने क्या दिल में कमी थी कि भटकते ही रहे
जिस भी ठीये पे रहे वाँ पे गुज़ारा न हुआ--इस शैर का सानी यों कर लें:-

'जिस ठिये पर भी गये वाँ पे गुज़ारा न हुआ'

नस्ले फ़रदा ये बतायेंगी बड़ी हैरत से
राज़ के जैसा कोई दर्द का मारा न हुआ--इस शैर के ऊला में 'बताएंगी' को "बतायेगी" कर लें ।

~राज़ नवादवी

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 33

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Comment by राज़ नवादवी 7 hours ago

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब, आदाब। ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का ह्रदय से आभार। 

Comment by राज़ नवादवी 7 hours ago

आदरणीय मुहम्मद आरिफ़ साहब, आदाब। ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का ह्रदय से आभार। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'10 hours ago

आ. भाई राजनवादवी जी, सुंदर गजल हुयी है ।  हार्दिक बधाई ।

Comment by Mohammed Arif 10 hours ago

आदरणीय राज़ नवादवी जी आदाब,

                             बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल लेकिन बहुत दिनों के बाद पढ़ने को मिल रही है । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद । बाक़ी गुणीजन आपनी राय देंगे ।

Comment by राज़ नवादवी 14 hours ago

आदरणीय ब्रजेश जी, सुखन नवाज़ी का तहेदिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज'yesterday

बहुतखूब आदरणीय राज साहब बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है...

कृपया ध्यान दे...

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Comment by राज़ नवादवी on October 15, 2018 at 3:22pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब, आदाब। ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का ह्रदय से आभार। 

Comment by राज़ नवादवी on October 15, 2018 at 3:20pm

आदरणीय मुहम्मद आरिफ़ साहब, आदाब। ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का ह्रदय से आभार। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 15, 2018 at 12:08pm

आ. भाई राजनवादवी जी, सुंदर गजल हुयी है ।  हार्दिक बधाई ।

Comment by Mohammed Arif on October 15, 2018 at 11:51am

आदरणीय राज़ नवादवी जी आदाब,

                             बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल लेकिन बहुत दिनों के बाद पढ़ने को मिल रही है । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद । बाक़ी गुणीजन आपनी राय देंगे ।

Comment by राज़ नवादवी on October 15, 2018 at 8:33am

आदरणीय ब्रजेश जी, सुखन नवाज़ी का तहेदिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 14, 2018 at 7:21pm

बहुतखूब आदरणीय राज साहब बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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