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'गुड टाइम, बैड टाइम' (लघुकथा)

"अब तो बता दो कि 'गुड टेररिज़्म (आतंकवाद)' और 'बैड टेररिज़्म' में वाक़ई क्या फ़र्क है?" एक धर्मावलंबी ने कहा।


"वही फ़र्क है न, जो इंसां की ज़िन्दगी में 'गुड टाइम' और 'बैड टाइम' में है; जो 'गुड ह्यूमन' और 'बैड ह्यूमन' के बीच में है!" दूसरे ने जवाब दिया।


"जी नहीं, अंतर वही है, जो 'गुड ह्यूमन' के 'बैड टाइम' और 'बैड ह्यूमन' के 'गुड टाइम' के बीच में है!" एक हारे हुए परेशां शिक्षित बेरोज़गार ने अपनी पथराई आंखों से दो बूंदे टपकाते हुए कहा - "नासमझी या दुर्भाग्य से 'गुड टाइम' किसी के हाथ से ज़ल्दी 'फिसल' जाता है, तो कोई 'चतुराई' से ज़माने के साथ चलकर उसे सालों 'थामे' रहता है!"


" ... और 'बैड टाइम'.. ?" दोनों धर्मावलंबियों में से एक ने पूछा।


" .. 'बैड टाइम'! .. वो तो भैया बहुत 'टिकाऊ' और 'बिकाऊ' होता है! ईमां बेचने पर तो फ़ुर्ती से फिसलकर बेचने वाले को ऊपर तरक़्क़ी की ओर धकेल देता है; बाक़ियों के मेरी तरह बुरे हाल कर देता है!" उस बेरोज़गार ने अपनी शैक्षणिक उपाधियों और निरस्त आवेदनों से भरे झोले को थके हुए कंधे से उतारते हुए कहा- "एक आतंकवाद वह है, जो मीडिया बताता है और दूसरा वह है जो अपनी ही सड़कों, घरों और दफ़्तरों में होता है! 'गुड' या 'बैड' केवल भुगतने वाला ही महसूस कर पाता है!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 18, 2018 at 11:12pm

आपकी इस्लाह पर ग़ौर करूंगा।बहुत बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब।

Comment by Mohammed Arif on July 10, 2018 at 7:59am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                     "गुड टाइम और बैड टाइम" के बीच अंतर को बताती साधारण दर्ज़े की लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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