"हैलो! आदाब! ठीक तो हैं न! कहां तक पहुंच गईं आप? ज़रा अपनी घड़ी साहिबा पर भी इक नज़र तो डालियेगा!" शायर 'राज़' साहिब ने साहित्यिक सम्मेलन परिसर के मुख्य द्वार पर अगली सिगरेट का अगला लम्बा कश लेते हुए मोबाइल फ़ोन पर एक बार में ये सवाल दाग़ दिये!
"आदाब राज़ साहिब! मैं वहीं हूं अपनी क़लम संग, जहां मुझे इस वक़्त होना चाहिए!" दूसरी तरफ़ से चिर-परिचित सुरीली आवाज़ में सोशल मीडिया की आभासी सहेली शायरा शबाना ने आश्चर्य-मिश्रित लहज़े में कहा - "माना कि आप घड़ी नहीं पहनते, लेकिन अपने मोबाइल पर मेरे मैसेज का मुक़र्रर वक़्त तो देख लिया होता!"
सुनकर राज़ साहिब ने फिर से मैसेज बॉक्स चैक किया और तुरंत बोले - "मुआफ़ कीजिएगा, आप से रूबरू मिलने के लिए इतना उतावला था कि केवल संदेश पर सरसरी तौर पर ही ग़ौर फ़रमाया; उसे भेजने का वक़्त और मिलने का दिया वक़्त देखे बग़ैर यहां गेट पर दो घंटों से आपका बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था!"
"शायरों को वक़्त के फिसलने का अहसास कहां हो पाता है राज़ साहिब। जज़्बात अशआर के अल्फ़ाज़ में फिसल कर तैर जाते हैं; वक़्त भले फिसल जाये, लेकिन सच्चा लगाव और मुहब्बत-ओ-अख़लाक़ नहीं फिसला करते! ख़ैर कोई बात नहीं, मेरा मैसेज आपने देर से पढ़ा। फिर कभी मुलाक़ात होगी, अगर अल्लाह ने चाहा!" मोबाइल फ़ोन पर दूसरी तरफ़ से शबाना जी की मधुर आवाज़ शायराना अंदाज़ में गूंज रही थी और इधर राज़ साहिब अभी भी मोबाइल के मैसेज बॉक्स में उनके भेजे संदेश और टाइम को देखकर मंद-मंद मुस्करा कर उंगलियों के बीच थमी अपनी सिगरेट को यूं झटका दे रहे थे, जैसे की समय उनको झटका देकर चला गया हो।
"नाम है 'शबाना' और इस 'शब' ख़ूबसूरत मुलाक़ात फिसल ही गई, वक़्त के साथ!" बड़बड़ाते से हुए वे अगली सिगरेट का अगला कश लेकर गुनगुनाने लगे - "वक़्त करता जो वफ़ाss, वक़्त पर आ गये होतेss...!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब, जनाब समर कबीर साहिब,मुहतरमा राजेश कुमारी साहिबा, जनाब विजय निकोरे साहिब और जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' साहिब।
बहुत खूब लघु कथा हुई आदरणीय..
अब पछताए होत क्या जब ... मुहावरा याद आ गया लघु कथा पढके उस्मानी जी .बहुत खूब वाह्ह्ह्ह
लघु कथा बहुत अच्छी कही है। दिल से मुबारक देता हूँ।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,उम्दा लघुकथा हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।बहुत शायराना अंदाज़ में लिखी गयी है लघुकथा। रोम रोम पुलकित हो गया।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online