"मैं ... मैं समय हूँ!"
"चुप कर यह "मैं .. मैं" ! मालूम है कि तू समय है और इस सृष्टि का सब कुछ मय समय है तय समय में!" विज्ञान और तकनीक ने एक स्वर में व्यंग्य किया।
"लेकिन तू कितनी भी फुर्ती से कहीं से भी फिसल ले, तुझे अपनी हथेली में किसी कठपुतली की तरह नचा सकते हैं हम, भले मुट्ठी में तुझे क़ैद न कर सकें, समझे!" 'तकनीक' ने 'विज्ञान' के कंधों पर टांगें पसारते हुए आगे की तरफ़ क़दमताल कर अपनी हथेली दिखा कर पलटाते हुए कहा।
"इतने आत्ममुग्ध मत हो! जीत-हार, भूकंप-सुनामी और बाढ़-ज़लज़ला सब मेरे ही रूप व अवतार हैं, ये सब मेरे ही वश में हैं, तुम्हारे नहीं!" पुनः हिदायत देते हुए समय ने कुछ उग्र होते हुए कहा - "तुम लोग अपनी हदें पार कर चुके हो! ईश्वर ने तुम्हारी विशिष्ट बुद्धियों को जो असल ज़िम्मेदारियाँ सौंपीं थीं, उन को सही तरह से निबाहने के बजाय इस ज़मीं और आसमां में अपनी हदें पारकर दूसरों के यहां सेंध लगा रहे हो!"
"तो क्या तुम्हारे ही ढर्रे पर चलकर फिसल-फिसल कर, मानव को फिसलाकर उसे छकाते भर रहें ? तुम्हारी ग़ुलामी करते हुए जैसे थे, वैसे और वहीं बने रहें!" 'तकनीक' ने अपनी दोनों हथेलियों में पानी भरकर उलीचते हुए कहा - "इस तरह तू अपने ढर्रे पर कब तक चलेगा? अब हम जैसा चाहेंगे, वैसा ही तू चलेगा!"
"चलना तो तुम सब को पड़ेगा, क़ुदरत के ढर्रे पर!" यह कहकर समय वहां से आदतन खिसक लिया।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर इसके मर्म तक जाकर अपने विचार सांझा करते हुए मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर साहिब,मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा और मुहतरमा बबीता गुप्ता साहिबा।
समय किसी का ,चाहे जितनी आधुनिकता आजायें,बेहतरीन बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी.
आ. भाई शेख शहजाद जी, सादर अभिवादन । सुंदर कथा हुयी है हार्दिक बधाई ।
बहुत ही बढ़िया लघुकथा हुई है आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी। हार्दिक बधाई।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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