(1) बूँदें नहीं
चाँदी के सिक्के गिरते हैं
बादलों की झोली से
और धरती लूट लेती है ।
*******
(2) वर्षा कुबेर
दोनों हाथों से लुटाता है
वर्षा -धन
नदियाँ, सरोवर और तालाब
लूटकर संग्रहित कर लेते हैं ।
*******
(3) बारिश की आत्मकथा
साल भर लिखते रहते हैं
पेड़-पौधे और हरियाली ।
*******
(4) बारिश की बूँदें
नई धुनें
तैयार करने लगती है
राग-मल्हार के लिए ।
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(5) बारिश का
अहसास कब होता है ?
जब अवचेतन में बसी नदी
उफनने लगती है ।
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मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय विजय शंकर जी ।
बारिश की आत्मकथा
साल भर लिखते रहते हैं
पेड़-पौधे और हरियाली।
बहुत खूब , बधाई, आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, सादर।
हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोर जी ।
हार्दिक आभार आदरणीया बबीता गुप्ता जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर जी ।
आखिरी पंक्तियाँ बेहतरीन ,वर्षा रानी का एहसास तो वास्तव में तभी होता हैं.हार्दिक बधाई उम्दा रचना के लिए आदरणीय आरिफ सरजी।
हार्दिक आभार आदरणीया नीलम उपाध्याय जी ।
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