समाज - लघुकथा –
गौरीशंकर जी की आँख खुली तो अपने आप को शहर के सबसे बड़े अस्पताल के वी आई पी रूम में पाया। उनकी तीस जून को रिटायरमेंट थी। सारा विद्यालय तैयारी में लगा था क्योंकि वे विद्यालय के लोकप्रिय हैड मास्टर जो थे।
"कैसे हो मित्र"? उनके परम मित्र श्याम जी ने प्रवेश किया।
"भाई, मैं यहाँ कैसे"?
"कोई खास बात नहीं है? रिटायरमेंट वाले दिन मामूली सा अटैक आया था| चक्कर आये थे। बेहोश हो गये थे"?
"यार, मुझे तो कभी कोई शिकायत नहीं थी"?
"अरे यार कुछ बातें अचानक ही होती हैं"?
"हाँ कुछ दिन से मैं कुछ ज्यादा ही उलझा हुआ था। मन में कई सवाल थे। बच्चे दोनों विदेश में हैं। वे जिद कर रहे थे कि उनके पास आ जाओ, मगर मैं यहाँ की जमींन जायदाद छोड़कर नहीं जाना चाहता था”?
"मगर मित्र, अब परिस्थिति बदल चुकी है। तुम्हारी देखभाल यहाँ कौन करेगा"?
"हाँ यार, मेरी पत्नी तो मुझे बरसों पहले ही मँझधार में छोड़ गयी। लोगों ने बहुत कहा था कि दूसरा ब्याह कर लो। लेकिन मैंने बच्चों के भविष्य को प्राथमिकता दी"?
"पर भाई, अब तुम्हारे बच्चे तो अपनी अपनी गृहस्थी में उलझ गये"।
"हाँ मित्र इसी का नाम जीवन है"?
"मेरे पास एक सुझाव है, तुम्हारे लिये"?
"कैसा सुझाव"?
"तुम शादी कर लो"?
"क्यों मज़ाक़ करते हो। शादी और इस उम्र में"?
"मजाक़ नहीं भाई। मैं गंभीरता से सलाह दे रहा हूँ। उम्र को छोड़ो और जरूरत को ध्यान में रखो"?
"पर कोई ऐसा साथी मिले भी तो"?
"वह भी है मेरी नज़र में"?
"कौन है"?
"निर्मला, तुम्हारे ही विद्यालय की विधवा संगीत अध्यापिका। वही तुम्हारी सेवा कर रही थी यहाँ। मैंने उससे बातों बातों में पूछा था"?
"मगर मित्र, समाज और मेरे बेटे क्या कहेंगे"?
"यार, यह सब सोचोगे तो फिर अटैक पड़ जायेगा"?
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय नीलम उपाध्याय जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, नमस्कार। बहुत ही अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।
ज़िन्दगी के एक अहम मोड़ पर सामाजिक सरोकार की समसामयिक सकारात्मक रचना। हार्दिक बधाई और आभार मार्गदर्शन हेतु आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब।
हार्दिक आभाअर आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।
मुहतरम जनाब तेज वीर साहिब, आजकल के हालात को बयान करती सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय बसंत कुमार जी।
वाह लाजबाब , प्रेरक लघुकथा , बहुत बहुत बधाई आपको
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