बचके चलना सीख लिया है
हमने संभलना सीख लिया है
वक़्त सदा होता ना अच्छा
हमने बदलना सीख लिया है
देख समंदर की लहरों को
हमने मचलना सीख लिया है
दर्द अगर हद से बढ़ जाए
हमने पिघलना सीख लिया है
भाग रही अपनी दुनिया में
हमने ठहरना सीख लिया है
आसमान की ख़्वाहिश सबकी
हमने उतरना सीख लिया है !!
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आ डॉ आशुतोष मिश्रा जी, "आसमाँ" की जगह "आसमान" शायद बेहतर होगा
बहुत बहुत आभार आ श्याम नारायण वर्मा जी
आदरणीय विनय जी इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई
आसमाँ की ख़्वाहिश सबकी...आसमाँ पर थोडा प्रबाह बाधित
लग रहा है सादर
बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई । सादर |
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