For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिचक--
"कभी बेटे को भी गले से लगा लिया कीजिये, वह भी आपके सीने से लगकर कुछ देर रहना चाहता है", रिमी ने गहरी सांस लेते हुए कहा. रमन को सुनकर तो अच्छा लगा लेकिन वह उसे दर्शाना नहीं चाहता था.
"ठीक है, इससे क्या फ़र्क़ पड़ जायेगा. वैसे भी तुम तो जानती हो कि मैं इन सब दिखावों में नहीं पड़ता", रमन ने अपनी तरफ से पूरी लापरवाही दिखाते हुए कहा. अंदर ही अंदर वह जानता था कि इसकी कितनी जरुरत है आजकल के माहौल में, लेकिन एक हिचक थी जो उसे रोकती थी.
"फ़र्क़ पड़ता है, आखिर उसके अधिकतर दोस्त तो अपने पिता से कितने दोस्ताना तरीके से रहते हैं. और आप इतने रिजर्व, आखिर आप ऐसे क्यूँ रहते हैं?
रमन को मालूम था कि वह इन बातों का जवाब नहीं दे पायेगा, एक हिचक थी जो शुरू से उसे यह सब करने से रोकती थी. और उसने बात बदलने के लिए बोला "उसकी सब तैयारी हो गयी ना, देखना कुछ छूट न जाए".
रिमी वापस बेटे का बैग पैक करने लगी, रमन ने धीरे से अपनी बाँहों का घेरा कुछ यूँ बनाया जैसे बेटे को सीने से लगा रहा हो. उसी समय बेटा कमरे में आया और रमन से ख़ामोशी से लिपट गया. हौले से उसने अपना हाथ बेटे के पीठ पर फेरना शुरू किया, सामने से रिमी ने देखा तो वह भी आकर दोनों से लिपट गयी.
हिचकियों के बीच बरसों पुरानी हिचक हौले हौले बह निकली.
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 691

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on July 20, 2018 at 2:07pm

बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी

Comment by विनय कुमार on July 20, 2018 at 2:06pm

बहुत बहुत आभार आ शेख सहजाद उस्मानी साहब

Comment by विनय कुमार on July 20, 2018 at 2:06pm

बहुत बहुत आभार आ तस्दीक़ अहमद खान साहब

Comment by Neelam Upadhyaya on July 19, 2018 at 3:57pm

आदरणीय विनय कुमार जी, बहुत ही अच्छी रचना।  प्रस्तुति के लिए बधाई। 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 18, 2018 at 11:30pm

बहुत बढ़िया समापन के साथ बढ़िया रचना।हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार  जी।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 18, 2018 at 9:50pm

जनाब विनय कुमार साहिब , अन्दर की भावनाओं को दर्शाती सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l

Comment by विनय कुमार on July 18, 2018 at 2:59pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय मुहतरम जनाब समर कबीर साहब
Comment by Samar kabeer on July 18, 2018 at 12:17pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by विनय कुमार on July 18, 2018 at 12:11pm

बहुत बहुत आभार आ बसंत कुमार शर्मा जी

Comment by विनय कुमार on July 18, 2018 at 12:10pm

बहुत बहुत आभार आ तेजवीर सिंह जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. लक्ष्मण जी,मतला भरपूर हुआ है .. जिसके लिए बधाई.अन्य शेर थोडा बहुत पुनरीक्षण मांग रहे…"
24 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. आज़ी तमाम भाई,मतला जैसा आ. तिलकराज सर ने बताया, हो नहीं पाया है. आपको इसे पुन: कहने का प्रयास…"
31 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
41 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122**भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आइन्सान को इन्सान बनाने के लिए आ।१।*धरती पे…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
8 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
11 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
16 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service