For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक बार फिर कंधे पर,
लैपटॉप बैग लटकाये,
वह अलस्सुब्ह निकल पड़ा.
रात को देर से आने पर,
हमेशा की तरह
नींद पूरी नहीं हुई थी,
जलती हुई आँखों,
और ऐठन से भरे शरीर,
को घसीटता हुआ वह,
जल्दी जल्दी बस स्टॉप की तरफ
भागने की कोशिश कर रहा था.
कल रात की बॉस की डांट,
उसे लाख चाहने के बाद भी,
भुलाते नहीं बन रही थी.
कहाँ सोचा था उसने पढ़ते समय,
कि यह हाल होगा नौकरी में.
कहाँ वह सोचता था कि उसे,
मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी,
जैसे उसके पिता करते थे
और उसे बेहतर बनाने में,
अपने शरीर का एक एक
बूंद खून जला बैठे थे,
और जिन्दा भी नहीं बचे
उसे कुछ करते देखने के लिए.
आज उसे यक़बयक़ याद आया,
पिता मजदूर तो थे लेकिन,
रात होते होते घर आ जाते थे,
और किसी का भी कोई आदेश,
उसके बाद नहीं आता था उनके पास.
बच्चों के भविष्य की चिंता जरूर थी,
लेकिन हर समय का तनाव नहीं था.
शरीर जरूर उनका सूख गया था,
लेकिन उसे देखकर,
चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती थी.
आज उसे याद भी नहीं है,
कि उस तरह की मुस्कुराहट,
उसके चेहरे पर आखिरी बार कब थी.
आज वह मजदूर तो नहीं है,
लेकिन शायद उससे भी गया गुजरा है.

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 383

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on May 3, 2018 at 6:28pm

शुक्रिया आ मुहतरम जनाब समर कबीर साहब, आपके सुझाव पर संसोधन कर देता हूँ. शुक्रिया

Comment by Samar kabeer on May 2, 2018 at 11:13am

जनाब विनय कुमार जी आदाब,बहुत ही सुंदर और प्रभावी कविता लिखी आपने मज़दूर दिवस पर, इस बढ़िया प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

तीसरी पंक्ति में 'अलसुबह' ग़लत है,सहीह शब्द है "अलस्सुसुब्ह" देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
12 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
12 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
12 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
13 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
18 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service