"सबको इस रिक्शे पर बैठना है और मन किया तो घूमना भी है", एक तरफ से आती आवाज सुनकर रवि ने उधर देखा. शादी के उस मंडप में वह विशिष्ट दर्जा प्राप्त व्यकि था, आखिर दामाद जो ठहरा. सामने कुछ दूर पर खड़ा रिक्शा दिख गया, वही सामान्य रिक्शा था, बस उसको खूब सजा दिया गया था. साफा बांधे एक आदमी भी वहां खड़ा था जिसे लोगों को घुमाने की जिम्मेदारी दी गयी थी. रवि ने वहां से जाने की कोशिश की लेकिन पत्नी ने हाथ पकड़ लिया "अरे सब बैठ रहे हैं तो हमको भी बैठना पड़ेगा".
बारी बारी से लोग रिक्शे पर बैठते, कोई थोड़ा घूम भी लेता. फोटो अलबत्ता हर व्यक्ति खिंचा रहा था और कुछ तो सेल्फी भी ले रहे थे. और उतरने के बाद उस चालक को हर व्यक्ति भरपूर पैसे दे रहा था. उसकी बारी आयी तो उसने ध्यान दिया, उसके पहले वाले रिश्तेदार ने उतरकर १०० रुपये दिए थे. उसने भी एक बार जेब में हाथ डाला और नोट को छूकर आस्वस्त हुआ, फिर पत्नी के साथ रिक्शे पर बैठकर फोटो खिंचवाया.
रिक्शे से उतरकर जैसे ही उसने जेब में हाथ डाला, पत्नी ने उसको रोका और पर्स से पैसे निकालने लगी. उसने १५० रुपये निकाले और रिक्शेवाले को पकड़ाते हुए उस रिश्तेदार की तरफ देखा जिसने १०० रुपये दिए थे. उसको बेहद आश्चर्य हुआ और उसकी नज़रों के सामने कुछ दिन पहले पत्नी का रिक्शेवाले को डांटने का दृश्य कौंध गया "क्या भैया, लूट मचा रक्खी है, बस चार कदम का २० रुपये मांग रहे हो. १० रुपये दूंगी, चलना है तो चलो".
उस गमछी से पसीना पोंछते कमजोर रिक्शेवाले को उस दिन उसने चुपके से जो २० रुपये पकड़ा दिए थे, आज उसे बहुत कम लग रहे थे.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
इस हौसलाअफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत आभार आ मोहतरम सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहब
इस हौसलाअफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत आभार आ मोहतरम तस्दीक़ अहमद खान साहब
इस हौसलाअफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत आभार आ मोहतरम समर कबीर साहब
आद0 विनय जी सादर अभिवादन। बढिया व्यंग कसा आपने,स्टेटस के नाम पर दिखावा। बहुत बहुत बधाई आपको।
जनाब विनय कुमार साहिब , ज़बरदस्त लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
जनाब विनय कुमार जी आदाब,उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
इस हौसलाअफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत आभार आ मोहतरम शेख़ शहज़ाद साहब, मुझे लगता है स्टेटस एक ऐसा शब्द है जिसे हिंदी की रचना में भी आसानी से स्वीकार किया जा सकता है.
बहुत बहुत आभार नादिर खान साहब
विसंगतियों को शाब्दिक और चित्रित करती इन्सानियत पर विचारोत्तेजक रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब विनय कुमार साहिब। इतनी बढ़िया रचना का शीर्षक हिन्दी में हो, तो बेहतर।
....खूब कहा आदरणीय विनय कुमार जी ...
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