“लगता है आपने दुनियाँ नहीं देखी और खबरों से दूर रहते हैं आप”, ज़हूर भाई ने अपनी बात तेज आवाज मे कही, गोया वह आवाज के ज़ोर पर ही अपनी बात सही बताना चाहते थे. वह नए नए पड़ोसी बने थे रफ़ीक़ के और हाल मे ही हुए कौमी दंगों पर बहस कर रहे थे. रफ़ीक़ उनको लगातार समझाने की कोशिश कर रहे थे कि वक़्त का तक़ाज़ा इन चीजों से ऊपर उठकर सोचने का है.
“आप जितनी तो नहीं देखी लेकिन कुछ तो देखी ही है ज़हूर भाई, दुनियाँ इतनी भी बुरी नहीं है. आज भी इंसानियत जिंदा है और मोहब्बत का खुलूस कायम है”, रफ़ीक़ ने मुसकुराते हुए जवाब दिया.
“अमा मियां, आप ने लगता है कुछ नहीं झेला है इसीलिए ये बहकी बहकी बातें कर रहे हो. आँखें खोल के देखो, पूरी दुनियाँ हमारी दुश्मन बनी हुई है”, बहुत तैश मे आ गए थे ज़हूर भाई.
“एक और बात, कभी किसी ऐसे परिवार से आप मिले होते जिसने उनके हाथों अपना सगा खोया है तो समझते आप. मेरे पड़ोसी का हाल मैंने देखा था पिछले मोहल्ले मे”, ज़हूर भाई ने बात खत्म की.
थोड़ी देर तक तो रफ़ीक़ चुप रहे और फिर एक गहरी सांस लेते हुए बोले “आपने शायद इसी शहर की कई साल पहले की एक खबर पढ़ी होगी जिसमे एक नौजवान का क़त्ल ऐसी ही सोच के कुछ लोगों ने कर दिया था”.
ज़हूर भाई ने तुरंत टोका “वही तो मैं भी कह रहा हूँ, जो हालत मेरे पड़ोसी की हुई थी, वैसी ही हालत हुई होगी. अब वह परिवार भला मोहब्बत और इंसानियत की बात करेगा कभी”.
“लेकिन शायद आपने यह नहीं पढ़ा होगा कि उसके बाद उस कौम के तमाम लोगों ने आकर उस गुनाह की माफ़ी भी मांगी थी”, रफ़ीक़ ने कहीं दूर देखते हुए कहा.
ज़हूर भाई जब तक कुछ कहते, रफ़ीक़ ने फिर कहा “वह नौजवान मेरा बेटा था ज़हूर भाई”.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आ अनीता मौर्या जी
बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद उस्मानी साहब
बहुत बहुत आभार आ तस्दीक़ अहमद खान साहब
बहुत बहुत आभार आ कल्पना भट्ट जी
अच्छी लघुकथा...
जनाब विनय साहिब ,फ़िरक़ा परस्ती को आइना दिखाती सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
भड़काने वाले बहुत होते हैं सही राह दिखलाने वाले बहुत कम| आदरणीय बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है जिसके लिए हार्दिक बधाई आपको |
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