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सम्मान - लघुकथा –

सम्मान - लघुकथा –

 एक माँ के चार बेटे थे। बाप का साया बचपन में ही उठ गया था। अतः माँ ने उनके पालन पोषण में कुछ ज्यादा ही प्यार दिखाया और अतिरिक्त सावधानी बरती। इसका नतीजा यह हुआ कि बच्चे उदंड और शरारती हो गये।

माँ काम काज के लिये घर से बाहर रहती थी। और बच्चे सारे दिन मुहल्ले में हुल्लड़बाजी और दबंगयी दिखाते रहते थे। कभी किसी का काँच तोड़ देना या कभी किसी का सिर फोड़ देना। किसी का सामान उठा लाना। किसी स्त्री को छेड़ देना। यह उनका रोज़मर्रा का काम था।

आज दिन भर हंगामा करके चारों बेटे जैसे ही घर पहुँचे तो देखा माँ के सिर पर पट्टी बँधी थी। शरीर भी जगह जगह जख्मी था। खून टपक रहा था।

"माँ, यह क्या हुआ, कैसे हुआ"?

माँ चुपचाप सिर पकड़ कर बैठी रही।

"माँ तुम बोलती क्यों नहीं? यह किसने किया"?

माँ ने गुस्से में मुँह खोला, "मुहल्ले वाले आये थे। तुम्हारी शरारतों की शिकायत लेकर?  बातचीत के बीच कुछ उपद्रवी लड़कों ने पथराव कर दिया"?

"कौन थे वह लड़के? नाम बता माँ, एक एक को चीर कर रख देंगे"?

चारों बेटे हाथों में छुरी, डंडे और लाठी लेकर बाहर जाने को तैयार खड़े थे।

"माँ, जल्दी से नाम बता। आज एक भी जिंदा नहीं बचेगा"?

माँ चींख पड़ी,

"अरे चुप करो दुष्टो, मेरी इस हालत के जिम्मेदार तो तुम खुद हो? तुम दूसरों की माँ बेटी की इज्जत नहीं करोगे तो तुम्हारी माँ को कौन इज्जत देगा"?

 मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on July 21, 2018 at 8:55pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 21, 2018 at 6:24pm

बहुत ही प्रेरक व विचारोत्तेजक रचना के लिये हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी।

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