काव्य मंचों के अपरिहार्य ,नैसर्गिक प्रतिभा के धनी,प्रख्यात गीतकार ,पद्मभूषण से सम्मानित,जीवन दर्शन के रचनाकार,साहित्य की लम्बी यात्रा के पथिक रहे,नीरज जी का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के पुरावली गांव में श्री ब्रज किशोर सक्सेना जी के घर ४ जनवरी,१९२५ को हुआ था.गरीब परिवार में जन्मे नीरज जी की जिंदगी का संघर्ष उनके गीतों में झलकता हैं.युग के महान कवि नीरज जी को राष्ट्र कवि दिनकर जी 'हिंदी की वीणा' कहते थे. मुनब्बर राना जी कहते हैं-हिंदी और उर्दू के बीच एक पल की तरह काम करने वाले नीरज जी से तहजीव और शराफत सीखी थी.छः साल की उम्र में ही पिता का साया सिर से उठने के कारण घर में चूल्हा जलाने के लिए उन्हें काम के लिए निकलना पड़ा.हाईस्कूल पास कर टायपिस्ट की नौकरी के साथ-साथ एम.ए. किया और उसके बाद मेरठ में पढ़ाने के अलावा कविता लिखना,कवि सम्मेलन में लोकप्रिय हुए.
काव्य पाठ का अनूठे अंदाज में संचालन करने व श्रोताओं से रूहानी रिश्ता कायम करने वाले गीतों के इतिहास पुरुष नीरज जी के गीतों में समूचे युग की धड़कन को सुनना एक अजीव से अनुभूति कराता हैं.गद्य कविताओं के खिलाफ ,परम्परागत शैली और गीत काव्य व्यंजना सौंदर्य से निकलकर आमजन की पीड़ा और जनचेतना की अभिव्यक्ति से भरपूर उन्होंने गीत लिखे.परिणामस्वरूप जिनकी साहित्य के अभिरूचि ना भी थी,उनके दिलों में काव्य मंचो द्वारा अपने गीतों से ना केवल जगह बनाई बल्कि साहित्य को जन-जन तक पहुंचाया,उनका कहना था,जो दिल से गाया,वही गीत बन जाता हैं,कविता का रूप ले लेता हैं.गीतकार के रूप में जाने गए नीरज जी का स्थान स्वतंत्रोत्तर भारत में काव्य सम्मेलनों के उतार-चढ़ाव के बावजूद सर्वोपरि था.आधुनिक काल में गीतों का पर्दापर्ण करने वाले नीरज के गीतों में आमजन के दुःदर्द,पीड़ा,वेदना,विरह,मिलन,सब कुछ समाहित होने के कारण ,काशीनाथ सिंह जी ने उनके संबंध में कहा- 'वे घर बैठ गए और कवि सम्मेलन खत्म हो गए.नीरज जी कहते थे- 'इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में,लगेंगी आपको सदियाँ भुलाने में.'
कविता को किताब से जुबान पर लाने वाले नीरज जी ने अपनी कलम गीत,कविता,दोहे,शेर में भी आजमाई.सात दशकों तक देश में ही नहीं विदेशों में काव्य मंचो पर गीतों से श्रोताओं से रूहानी रिश्ता कायम रखने में सफल हुए.चर्मोंतकर्ष पर उनकी काव्याभिव्यक्ति में उपनिषद व चिंतन को अपनी गजलों के जरिये व्यक्त किया.सदा बहार गीत लिखने वाले नीरज जी के गीतों में जीवन संघर्ष व जीवन जीने के रहस्य सरलभाषा में व्यक्त किये.दिलों से दिलों तक अद्भुत जोड़ने की क्षमता रखने वाले नीरज जी के गीतों ने जड़चेतन,अवचेतन मन को चेतन करते हुए प्रेममयी गीतों ने सभी पर राज किया.उनके गीतों की इमारतों में संबेदनाओं से भरी,आत्मविश्वास की नींव पर निर्मित की गई हैं.निस्सार जीवन में प्राण वायु का काम करते है,प्रेम बिना जग सूना,क्योकि प्रेम ही इन्सान को जीवित रखता हैं.नीरज जी कहते हैं-
'प्रेम हैं कि सभ्यता बड़ी खड़ी
प्रेम बिना मनुष्य दुश्चरित्र.
जातिपात के भेदभाव से दूर उन्होंने मानवता का अलख अपने गीतों से जगाया.धरती स्वर्ग समान हैं,कहा हैं-
जातपात से बड़ा धर्म हैं
धर्म पान से बड़ा कर्म हैं
कर्मकांड से बड़ा मर्म हैं.
इंसानियत की बात,भाईचारे की बात पर कहते हैं-
जिसकी खुश्बू से महक जाए पड़ौसी भी
फूल इस किस्म का हर किस्म सिक्त खिलाया जाय
नीरज जी ने धर्म पर कहते हैं कि धर्म की आड़ में लोगो ने केवल खोखली धार्मिक आस्था रखी,लोगो के जज्बात भूल गए बस उन ईटों के घर याद रहा गए.इसी आतंकवाद से होती त्रासदी का वर्णन करते हैं कि सड़को पर बारूदों का ढेर लगा हुआ हैं,डूश-दही बाह रहा हैं,नफरत की आड़ में अपनों के ही घर जला रहे हैं,कही घरों के चिरअफग ही बुझा डाले।इसी तरह गरीबी की समस्या से निपटने वाले खोखली वाद्य और योजनाओं पर तीखा प्रहार करते हुएअपने गीतों में लिखा हैं-
'लड़ना हमे गरीबो से था ,और हम लड़ गए गरीबों से'
गहरे और गंभीर बिंदुओं पर सपाट बयानवाजी करने वाले नीरज जी नेसामाजिक सुधार के विषय में लिखा हैं-
'जलाओं दीये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कही रह ना जाए
गीतों में अंतर्वस्तु होने के कारण आकृष्ट करते गीतों में उनका जीवन परिचय झलकता हैं-
'जीवन कटना था ,कट गया
अच्छा कटा,बुरा कटा
यह तुम जानो
मैं तो यह समझता हूँ.'
मनुष्य को परलोक की यात्रा की सच्चाई से परिचित कराता गीत ,जिसे सुनकर मन दुःख और अवसाद से भर जाता हैं.पर मृत्यु लोक की सच्चाई जानकर भी मान दिनरात है तौबा में लगा रहता हैं.ऐसा ही गीत की चंद पंक्तियाँ -
बेकार बहाना,टालमटोल व्यर्थ सारी
आ गया समय जाने का,जाना ही होगा
तुम चाहे जितना चीखों,चिल्लाओं,रोओ
पर मुझको डेरा आज उठाना ही होगा
नीरज जी कहते हैं ,जाना तो नियति हैं,यह एक खेल हैं,मृत्यु अटल हैं,इस सत्य को स्वीकारते हुए अपने गीतों में लिखते हैं-
ना जन्म कुछ,ना मृत्यु कुछ,बस जरा सी बात हैं
किसी की आँख खुल गई,किसी को नींद आ गई.'
'सुख के साथी मिले हजारों लेकिन दुःख में साथ निभाने वाला मिला नहीं,लिखने वाले नीरज जी जीवनभर सच्चे प्यार को तलाशते रहे.दुनिया से छले जाने पर भी नीरज जी कभी डिगे नहीं बल्कि मजबूती से अपने आपको थामे रहे.गीतों में जीवन की सच्चाई से रूवरू कराने वाले नीरज जी ने इस सच्चाई को मानकर,दुःख-दर्द को अपने में समेट कर आत्मीयता जताते हिये लिखते हैं-
छिन-छिन रीत रहा मेरा जीवन घट रहा हैं
सबकी आँख लगी थी मेरी गठरी पर
और मची थी आपस में मेरा-तेरी
जितने मिले सब मन के चोर मिले
लेकिन ह्रदय चुराने वाला नहीं मिला
शोहरत,इज्जत,दौलत,शानमान सब कुछ होते हुए भीं उनका जर्जर होता शरीर अपने पन के एहसास से थोड़ा स्वस्थ ,कांतिवान होना चाहता था.तमाम उम्र मैं अजनबी के घर में रहा,सफर न करते हुए भी सफर में रहा ,ये भाव ,संघर्ष के दिनों में डा.चाँद और उनके पति द्वारा की जाने वाला सहयोग के समय की हैं,इस परोपकार को उतारने के लिए उन्होंने अपने की गीतों में चाँद शब्द को शामिल किया जिससे वो गलत फहमी के शिकार होने पर उन्होंने अपनी साफगोई में उन्हें माँ का दर्जा दिया। 'चाँद मेरी माँ के समान थी,'
कारवां गुजर गया गुबार देखते रहें ,अपने पहले नाक़ामयाव प्यार के अरमानो की उठती डोली पर अपनी अंतर्व्यथा को कुछ इस तरह बया किया-
'कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है'
'जिंदगी गीत थी पर जिल्द बाँधने में कटी,' 'नींद भी खुली न थी कि है धूप ढल गई,पांव जब तलक उठे कि जिंदगी फिसल गई,' ऐसी कई पंक्तियाँ उनके गीतों की जो उनके जीवन का अक्स दिखाती हैं.
जीवन मृत्यु के विषय में अपने भावो को नीरज जी कुछ इस तरह गीतों में उड़ेलते हैं-
'मेरे नसीब में ऐसा भी वक्त आना था,जो लगा गिरने वाला था,वो घर मुझे बनाना था,'
सूफियाना अंदाज में भी लिखा हैं-
'दिल के काबे में नवाज पढ़,यहां वहां भरमाना छोड़.'
सारांशतः नीरज जी में जीने का जोश था.कुमार विश्वास उन्हें वाचिक परम्परा का ऐसा सेतु ,जिस पर चलकर नवांकुरों तक सहजता से पहुँच जाते हैं.गीत गंधर्व से सम्बोधित करते हुए विशवास जी कहते हैं कि वे किसी सात्विक उलाहने के कारण स्वर्ग से धरा पर उतरा कोइ यक्ष हो.'
अंततः यश भारती और विश्व उर्दू पुरूस्कार से सम्मानित नीरज जी पहले ऐसे शख्स थे जिन्हे शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो बार १९९१ में पद्मश्री,२००७ में पद्मभूषण से नवाजा।कारवां गुजर गया गीत के रचयिता नीरज जी को फिल्म गीतों के लिए लगातार तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड्स से सम्मानित किया गया.काल का पहिया घूमे रे भईया,बस यही अपराध मैं हर बार। ...,ऐ भाई जरा देख के चलो..... के लिए दिया गया.शोखियों में घोला जाएँ फूलों का शबाव.....,दिल अब शायर हैं......,जैसे सदाबहार गीत लिखने वाले नीरज जी ने [पत्र संकलन]लिख-लिख भेजत पाती,[आलोचना]काव्य और दर्शन,आसावरी,पनतकला,दर्द दिया हैं ,मुक्तकी ,आदि भी शामिल हैं. 'लो चला,सम्भालों तुम सब अपना साज-बाज,.........हिंदी कविता का एक युग १९ जुलाई,२०१८ को अवसान हो गया.
शत शत नमन करते हुए श्रद्धांजलि ....
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
प्रिय गोपाल दास नीरज जी के जीवन और उनके लेखन पर इस सुन्दर लेख के लिए हार्दिक बधाई, आदारणीया बबिता जी
"कवियों का जिसे बरगद कहते थे सब 'प्रदीप '
'नीरज' वो आज छोड़कर तन्हा चला गया"
सधन्यवाद ,आदरणीया नीता दी.
आद० गोपाल दास नीरज जी पर बेहद सुंदर आलेख लिखा है,आपने आद० बबिता गुप्ता जी ।बिरले ही थे वे,साहित्यक जगत में अपनी अमिट छाप छोड गये है वे ।आने वाली पीढ़ियां उन्है याद करेंगी ।श्रद्धाजंलि ,नमन।
जी, धन्यवाद, आदरणीय समर सर और तेज वीर सर जी का, त्रुटियों का ध्यान रखूंगी।
मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,गीतों के बादशाह को अच्छे अंदाज़ में श्रद्धांजलि पेश की आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
कुछ टंकण त्रुटियाँ देख लें ।
हार्दिक आभार आदरणीय बबिता गुप्ता जी।इस सद प्रयास के लिये। अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली। एक अध्याय की इति हो गयी। गीतों का मसीहा सो गया।सदियों में ऐसे महान साहित्यकार पैदा होते हैं। इतना कुछ दिया इस दुनियाँ को लेकिन फिर भी खाली हाथ चले गये।यही रीति है इस जीवन की।बस नाम रह जाता है।वही सत्य है।वही काफ़ी है। शत शत नमन।
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