रामू की माँ तो अपने पति के शव पर पछाड़ खाकर गिरी जा रही थी.रामू कभी अपने छोटे भाई बहिन को संभाल रहा था ,तो कभी अपनी माँ को.अचानक पिता के चले जाने से उसके कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा था.
पढ़ाई छोड़,घर में चूल्हा जलाने के वास्ते रामू काम की तलाश में सड़को की छान मारता।अंततःउसने घर-घर जाकर रद्दी बेचने का काम पकड़ लिया।रद्दी में मिलती किताबों को देख उसके अंदर का किताबी कीड़ा जाग उठा.किताबे बचाकर,बाकी रद्दी बेच देता।और रात में लालटेन में अपने पढ़ने की भूख को तृप्त करता।
समय बीतता गया,माँ सिलाई करती,और भाई-बहिन को अच्छे स्कूल में दाखिला दिला दिया।उसने भी एक छोटी सी किराए पर दुकान ले ली.उसमे रद्दी के साथ पुरानी किताबो की भी विक्री करता.लेकिन एक बात हरदम दिमाग में घुमड़ती रहती,काश,कभी तो मेरी लिखी किताब इसी तरह विकेगी....
लेकिन बुरा वक्त कहकर नहीं आता.अकस्मात माँ के देहावसान ने उसे तोड़ कर रख दिया,लेकिन बचपन से मिले संघर्ष ने उसे सकारात्मक नजरिये से गिरकर,फिर से उठने की हिम्मत दी.लेकिन अकेले में वो अपने आप से पूछता- 'आखिर जिंदगी हैं क्या?सब कुछ जमने को होता हैं,फिर सब तहस-नहस हो जाता हैं.'
लेकिन ऐसे समय,किताबों में पढ़े वाक्यों को वो अपनी जिंदगी में आत्मसात करता,जो उसे हिम्मत देते थे.
एक दिन छोटे भाई बहिन को झगड़े को वो ऐसे समझा रहा था कि,मुन्नी बोल पड़ी- भैया ,आप इतनी अच्छी बाते करते हो,कौन सिखाता हैं, आपको?
रामू उसके सिर पर प्यार हाथ फेरते हुए ,खोया हुआ सा कहता हैं- 'वक्त इन्सान को सब सीखा देता हैं.'
पीछे से चीकू बोलता हैं- 'भैया आप ढेरों किताबे पढ़ते हो,आप अपनी किताब क्यों नहीं लिखते?'
हाँ में हाँ मिलाते हुए मुन्नी भी कहती हैं- आप भी लिखों ना.'
रामू ने चीकू मुन्नी से तो उनकी हाँ में हाँ मिला दी पर ,जैसे उसके अंदर के दबे विचारों को कौंधा दिया हो,सपने को पूरा करने का रास्ता दिखा दिया हो.
दिन तो रोजी रोटी में चला जाता और रात में पन्नों पर अपनी जीवन गाथा में संघर्ष और उसके उत्थान को रचता.लम्बे अंतराल व जद्दोजहद के ततपश्चात किताब प्रकाशित हुई.कहते हैं ना वक्त बड़ा बलवान होता हैं,मेहनत कभी निरर्थक नहीं जाती,और जल्द ही किताब ने सबके दिलों पर राज कर लिया. आज उसकी किताब जीविकोपार्जन का साधन बनी,जिनका वास्ता वक्त की मार ने छुड़वा दिया था.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
'लघु कथा' नहीं लिखिए, बल्कि सही मान्य विधा-नाम 'लघुकथा' लिखियेगा। सादर
बढ़िया शीर्षक के साथ बहुत बढ़िया कथानक पर बढ़िया प्रयास के लिए हार्दिक बधाइयाँ आदरणीया बबीता गुप्ता जी। दो जगह कालखंड दोष समझ आ रहा है। कृपया आदरणीय तेजवीर सिंह जी की इस्लाह (सुझावों) पर ग़ौर फ़रमाकर इसमें से किसी एक विसंगति पर फ्लैशबैक तकनीक का उपयोग कर पुनः लघुकथा प्रयास कीजिएगा। सादर
मुहरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,जनाब तेजवीत जी की बातों का संज्ञान लें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप्ता जी।आपका प्रयास सराहनीय है।मेरे विचार से यह लघुकथा का विषय नहीं लगता।इस पर आप एक सुंदर सी कहानी लिख सकते हो।क्योंकि इसमें आपने कई सारी घटनायें समाहित कर दीं।पिता की मृत्यु, माँ की मृत्यु फिर पुस्तक का प्रकाशन। लघुकथा केवल एक घटना का विशिष्ट सूक्ष्म विवरण दर्शाती है।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online