भारी बारिश हो रही थी। बगीचे की टीन-शेड के नीचे बच्चे भीगे मौसम के साथ झूले के मज़े ले रहे थे। गरम पकोड़ों का लुत्फ़ लेते हुए उनके अब्बूजान अपने पुराने से अज़ीज़ ट्रांजिस्टर पर मुल्क की चुनावी राजनीतिक हलचलों, बाढ़ों के क़हर और तबाहियों के गरम समाचार सुन रहे थे । बच्चों की अम्मीजान भी समाचारों को झेल रहीं थीं। तभी बड़ी बेटी बोली - "अब्बू! ख़ुदा न करे! अगर नेताओं और अंग्रेज़ों के 'रिमोट कंट्रोल' से '1947 की रात' जबरन दुबारा रिपीट की गई और मुसलमानों को अलग किसी हिस्से में हांका गया, तो आप कहां तशरीफ़ ले जायेंगे?"
"ला.. हौल वाला कुव्वत...!" अब्बूजान ने आसमां पर 'ग़रजते' बादलों और चमकती 'धमकाती' सी 'बिज़लियों' की और देखते हुए पास ही बैठी अपनी बीवी से कहा - "बेगम! बंद तो करवाओ इनका टीवी देखना और अख़बार पढ़ना!" फिर बिटिया को जवाब देते हुए बोले - "एक तो ऐसा कभी होगा ही नहीं! अगर हुआ तो हमारा संविधान और क़ानून जो हुक्म देगा, वही हमें करना ही होगा न!"
"लेकिन मैं तो अपने इसी वतन में रुकी रहूंगी!"
"धत तेरे की!" बिटिया की बात पर झुंझलाकर अम्मीजान बोलीं - "तो क्या उनके मुताबिक जयकारा और प्रार्थनाएं करती रहेगी यहां!"
"अरे अम्मी! बाजीजान बुद्धू थोड़ी न हैं ! कुछ फेमस मुस्लिम नेताओं, मुख्यमंत्रियों और फ़िल्मी-हस्तियों की तरह उन थोपी गई जयकारों और प्रार्थनाओं के ठीक पहले मन में अल्ला मियां से वे भी मुआफ़ी मांग लेंगी शरिअ़त के ख़िलाफ़ होने को मज़बूर करने वाले उन 'शैतानों' और 'पापियों' के हक़ में मुआफ़ी की दुआएं मांगते हुए! है न बाजीजान!" झूले से कूंदते हुए भाई बोला - "कहते हैं न कि अल्लाह बहुत बड़ा है! मज़बूर सताये गये लोगों की 'सच्चे दिल से मांगी गई दुआएं' ज़ल्दी कबूल करता है 'इम्तिहान' लेने के बाद!"
"सही कहा भैया! हम 'वतनपरस्ती' अपने तरीक़े से ज़ाहिर करेंगे 'जम्हूरियत' के क़ायदे-क़ानून से और अपने 'मज़हब' मुुुुताबिक! ... और रहेंगे इसी गंगा-जमुनी हिस्से में! देख लेना अधिकतर मुसलमान 'पुरानी ग़लतियां' नहीं दोहरायेंगे!"
"आमीन, सुम्मा आमीन! इंशा'अल्लाह! ऐसा ही होगा बेटा!" अब्बूजान ने दोनों बच्चों के सिरों पर हाथ फेरते हुए कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरी इस रचना पर समय देकर अपने विचार सांझा करते हुए मुझे प्रोत्साहित करने हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब , आदरणीय समर कबीर साहिब और आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।आज के राजनैतिक माहौल के बारे में बेहद गंभीर लघुकथा।वर्तमान नेता लोग जिस प्रकार आग में घी डालकर देश का भाई चारा बिगाड़ रहे हैं, आम जन हर वक्त शंकित जीवन जी रहा है।
आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। मेरी तो बस एकही दुआ है कि कभी मुल्क का बंटवारा हो ही न। बहरहाल सीख देती इस लघुकथा पर मेरी आपको बधाई।
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