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" रक्षाबंधन "- कविता/ अर्पणा शर्मा,भोपाल

रक्षाबंधन पर्व ले आई,

श्रावण शुक्ल पूर्णिमा,

भर लाई अतुलित उल्लास,

पुनीत-पावन स्नेहिल ऊष्मा,

मैं  हर्षित पर्व यह सुमंगल मनाऊँगी,

हाथों सुंदर मेंहदी रचाऊँगी,

भाई मंगल तिलक करने 

मैं अवश्य ही आऊंगी, 

हाथ से रेशम की ड़ोरी बनाऊंगी,

जरी का उसमें झुमका लगाऊंगी,

चौक पूर, पाट पर तुमको बिठाऊँगी,

श्रीफल, रोली-अक्षत थाल सजाऊँगी,

राखी तुम्हारी कलाई सजाऊंगी,

तिलक चर्चित कर उन्नत भाल पर,

मंगल-दीप से आरती उतारूँगी,

तुम्हारे सुख , स्वास्थ्य , उन्नति की,

मंगल कामनाएँ दोहराऊंगी,

अपने संतापों की गठरी बाँध,

दूर कहीं पटक आऊंगी, 

तुम पर उनकी छाया भी न पड़े, 

इतना सुनिश्चित कर आऊंगी,

तुम्हारे सुखों में ही,

मैं स्वयं सुखी हो जाऊंगी,

जीवन की उलझनों में,

अनगिन ऐसे क्षण आएँगे, 

जब विश्वास-स्नेह ड़गमगाऐंगे,

तुम सधैर्य अविचल रहना,

परिश्रम- सदाशयता से,

प्रयत्न करते रहना,

जीवन कदापि नहीं संभव,

उतार-चढ़ाव बिना,

मिलकर पार इन्हें करना,

सुख,यश , समृद्धि, संतोष, 

हों ईश कृपा से अतुल्य-अदोष,

प्रार्थनाओं में अपनी,

यही मन्नतें सदा मनाऊँगी,

रहें अटूट सदा ये नेह-बँधन,

यही हों हमारे भरसक जतन,

पुनीत-पावन यह रक्षाबंधन,

इसकी रीत आजन्म निभाऊँगी..!

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 28, 2018 at 6:30pm

आ. अपर्णा जी, रक्षाबंधन पर सुंदर कविता हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on August 28, 2018 at 12:09pm

मुहतरमा अर्पणा शर्मा जी आदाब,रक्षा बंधन के मौक़े पर अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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