आपकी ओर से जब पहल हो गई
जिंदगी मेरी' कितनी सरल हो गई
उस तरफ आँख से एक मोती गिरा
इस तरफ आँख मेरी सजल हो गई
आपके रूठने का ये’ हासिल रहा
गुफ्तगू कम से’ कम, पल दो’ पल हो गई
घर हमारे पड़े जब कदम आपके
झोंपड़ी अपनी’ जैसे महल हो गई
प्यार हमने किया कैसे’ इजहार हो
थी ये’ मुश्किल मगर आज हल हो गई
अधखिली थी कली प्रेम की कल तलक
देखिये अब वो’ खिलकर कमल हो गई
चंद मिसरे लबों पर लरजते रहे
धीरे-धीरे मुकम्मल गजल हो गई
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
शुभ संध्या आदरणीय vijay nikore जी , आपकी मनभावन प्रतिक्रिया हेतु दिल से शुक्रिया
शुभ संध्या आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी , आपकी मनभावन प्रतिक्रिया हेतु दिल से शुक्रिया
शुभ संध्या आदरणीय Ajay Tiwari जी , आपकी मनभावन प्रतिक्रिया हेतु दिल से शुक्रिया
शुभ संध्या आदरणीय TEJ VEER SINGH जी , आपकी मनभावन प्रतिक्रिया हेतु दिल से शुक्रिया
शुभ संध्या आदरणीय Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' जी , आपकी मनभावन प्रतिक्रिया हेतु दिल से शुक्रिया
गज़ल अच्छी लगी। हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत जी
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आदरणीय...
आदरणीय बसंत जी, खूबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.
हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी। बेहतरीन गज़ल।
चंद मिसरे लबों पर लरजते रहे
धीरे-धीरे मुकम्मल गजल हो गई
शुभ प्रभात आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी , आपकी हौसला अफजाई का बेहद शुक्रिया
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