नीम रिश्तों में जेसे दर आया
हर तरफ़ तीरगी सी फेली है
रूह घायल है और सहमी है
अपका साथ अब न होने से
ज़िन्दगी जैसे एक मक़तल है
और मक़तल में मैं अकेला हूं
ज़िन्दगी की तवील राहों में
ख़ुद को बेआसरा सा पाता हूँ
साथ एसे में राहबर भी नहीं
दिल की मेहफ़िल में रोशनी भी नहीं
रूह में कोई ताज़गी भी नहीं
मैं हूँ बेआसरा सा सहरा में
ढ़ूंढ़ता हूं वही शफ़ीक़ नज़र
जानता हूँ कि तुम गए हो जहाँ
उस जगह से कभी न लौटोगे
दिल हक़ीक़त से आशना है मगर
फिर भी बैचेन मानता ही नहीं
एक उम्मीद पाले बैठा है
इन बयाबान ,आसमानों से
और माज़ी की इन चटानों से
ऐक आवाज़ फिर से उभरेगी
"मद भरी वौ सदाएँ अब्बु की"
"एक दिन तो ज़रूर आएँगी"
"एक दिन तो ज़रूर आएँगी"
मोलिक एवं अप्रकाशित
Comment
ख़ुश रहो अज़ीज़म,ख़ूब तरक़्क़ी करो ।
नज़्म बहुत ही खूबसूरत बनी है। आपको बधाई, जनाब मिर्ज़ा जावेद बैग साहिब।
जनाब ब्रजेश जी आदाब
हौसला अफ़जा़ई का शुक्रिया
वाह बहुत ही उम्दा नज़्म हुई है आदरणीय...बधाई
जनाब अजय तिवारी जी आदाब ,
हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया
आदरणीय जावेद साहब, बहुत अच्छी नज़्म हुई है. हार्दिक बधाई.
बहुत शुक्रिया मोहतरम आरिफ़ साहब ,
बेहतरीन दाद से नवाज़ने के लिए ममनुन ए करम हूँ
इमले की बारीकियों की तरफ़ मुतवज्जा कराने के लिए भी बहुत बहुत शुक्रिया
आदरीय मिर्ज़ा जावेद जी आदाब,
जनाब लक्षमण धामी जी आदाब,
दाद ओ तहसीन से नवाज़ने के लिए दिली शुक्रिया।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,
आपकी दाद से हौसलों को परवाज़ मिली है।
बहुत बहुत ॆॆशुक्रिया
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