For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"व्रत ने पवित्र कर दिया।" मानस के हृदय से आवाज़ आई। कठिन व्रत के बाद नवरात्री के अंतिम दिन स्नान आदि कर आईने के समक्ष स्वयं का विश्लेषण कर रहा वह हल्का और शांत महसूस कर रहा था। "अब माँ रुपी कन्याओं को भोग लगा दें।" हृदय फिर बोला। उसने गहरी-धीमी सांस भरते हुए आँखें मूँदीं और देवी को याद करते हुए पूजा के कमरे में चला गया। वहां बैठी कन्याओं को उसने प्रणाम किया और पानी भरा लोटा लेकर पहली कन्या के पैर धोने लगा।

 

लेकिन यह क्या! कन्या के पैरों पर उसे उसका हाथ राक्षसों के हाथ जैसा दिखाई दिया। घबराहट में उसके दूसरे हाथ से लोटा छूट कर नीचे गिरा और पानी ज़मीन पर बिखर गया। आँखों से भी आंसू निकल कर उस पानी में जा गिरे। उसका हृदय फिर बोला, "इन आंसूओं की क्या कीमत? पानी में पानी गिरा, माँ के आंचल में तो आंसू नहीं गिरे।"

 

यह सुनते ही उसे कुछ याद आया, उसके दिमाग में बिजली सी कौंधी और वहां रखी आरती की थाली लेकर दौड़ता हुआ वह बाहर चला गया। बाहर जाकर वह अपनी गाड़ी में बैठा और तेज़ गति से गाड़ी चलाते हुए ले गया। स्टीयरिंग संभालते उसके हाथ राक्षसों की भाँती ही थे। जैसे-तैसे वह एक जगह पहुंचा और गाडी रोक कर दौड़ते हुए अंदर चला गया। अंदर कुछ कमरों में झाँकने के बाद एक कमरे में उसे एक महिला बैठी दिखाई दी। बदहवास सा वह कमरे में घुसकर उस महिला के पैरों में गिर गया। फिर उसने आरती की थाली में रखा दीपक जला कर महिला की आरती उतारी और कहा, "माँ, घर चलो। आपको भोग लगाना है।"

 

वह महिला भी स्तब्ध थी, उसने झूठ भरी आवाज़ में कहा "लेकिन बेटे इस वृद्धाश्रम में कोई कमी नहीं।"

 

"लेकिन वहां तो… आपके बिना वह अनाथ-आश्रम है।" उसने दर्द भरे स्वर में कहा ।

 

और जैसे ही उसकी माँ ने हाँ में सिर हिला कर उसका हाथ पकड़ा, उसे अपने हाथ पहले की तरह दिखाई देने लगे।

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1078

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 8, 2018 at 5:41pm

आदरणीय क्च्छीचन्द्रेश भाई जी सादर नमन! कथा बुनी है।

Comment by Nita Kasar on October 29, 2018 at 7:29pm

कन्यापूजन  से भी उसे संतोष कैसे मिलता जब उसने अपनी माँ का मान सम्मान क़ायम नही रखा ।जब आत्मा से टीस उठी तब जाकर गल्ती का अहसास होना भी माँ के लिये बहुत है।संदेशप्रद कथा के लिये बधाई आद० चंद्रेश छतलानी जी ।

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 21, 2018 at 7:11pm

रचना पसंद करने और अपनी टिप्पणी द्वारा मेरा उत्साहवर्धन करने हेतु सादर आभार आदरणीय विजय निकोरे जी सर।

Comment by vijay nikore on October 19, 2018 at 6:57am

सामाजिक स्थिति पर प्रकाश डालने मे सफ़ल हुई है आपकी लघु कथा। हार्दिक बधाई, आदरणीय चंद्रेश कुमार जी

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 17, 2018 at 7:07pm

आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी सर, आपका रचना पर आना ही मेरे लिए बहुत बड़े सम्मान की बात है। रचना के मर्म तक पहुँच कर आपकी प्रेरणादायी समीक्षा मेरे सिर आँखों पर। सादर, 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 17, 2018 at 7:04pm

रचना पर अपनी उपस्थिति और उत्साह बढ़ाते शब्दों हेतु सादर आभार आदरणीया नीलम उपाध्याय जी।

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 17, 2018 at 7:03pm

रचना पर आकर अपनी टिप्पणी द्वारा उत्साहवर्धन करने और अच्छे सृजन हेतु मार्ग सुझाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' भाई जी।

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 17, 2018 at 7:00pm

रचना पर आकर आशीर्वाद स्वरुप टिपण्णी देने हेतु सादर आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर।

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 17, 2018 at 6:59pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब आपने रचना का बहुत अच्छा विश्लेषण किया और बेहतरीन सृजन के लिए मेरी हौसला अफ़ज़ाई की।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2018 at 10:29pm

//उसने झूठ भरी आवाज़ में कहा "लेकिन बेटे इस वृद्धाश्रम में कोई कमी नहीं।"//  इस अभिव्यक्ति में अनकहे में बहुत कुछ है; तो // लेकिन वहां तो… आपके बिना वह अनाथ-आश्रम है// इस में भी आज के जीवन और आत्म-मूल्यांकन/सिंहावलोकन की वास्तविक गहराई है। सादर हार्दिक बधाई और सबक़ हेतु आभार आदरणीय डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी साहिब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service