For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अमृतसर रेल दुर्घटना विभीषिका पर 5 लघुकथाएं

(1). मेरा जिस्म

 

एक बड़ी रेल दुर्घटना में वह भी मारा गया था। पटरियों से उठा कर उसकी लाश को एक चादर में समेट दिया गया। पास ही रखे हाथ-पैरों के जोड़े को भी उसी चादर में डाल दिया गया। दो मिनट बाद लाश बोली, "ये मेरे हाथ-पैर नहीं हैं। पैर किसी और के - हाथ किसी और के हैं।

"तो क्या हुआ, तेरे साथ जल जाएंगे। लाश को क्या फर्क पड़ता है?" एक संवेदनहीन आवाज़ आई।

"वो तो ठीक है… लेकिन ये ज़रूर देख लेना कि मेरे हाथ-पैर किसी ऐसे के पास नहीं चले जाएँ, जिसे मेरी जाति से घिन आये और वे जले बगैर रह जाएँ।"

"मुंह चुप कर वरना..." उसके आगे उस आवाज़ को भी पता नहीं था कि क्या कहना है।

 

 

(2). ज़रूरत

 

उस रेल दुर्घटना में बहुत सारे लोग मर चुके थे, लेकिन उसमें ज़रा सी जान अभी भी बची थी। वह पटरियों पर तड़प रहा था कि एक आदमी दिखा। उसे देखकर वह पूरी ताकत लगा कर चिल्लाया, "बचाओ.... बsचाओ...."

आदमी उसके पास आया और पूछा, "तुम ज़िंदा हो?"

वह गहरी-गहरी साँसे लेने लगा।

"अरे! तो फिर मेरे किस काम के?"

कहकर उस आदमी ने अपने साथ आये कैमरामैन को इशारा किया और उसने कैमरा दूसरी तरफ घुमा दिया।

 

(3). मौका

 

एक समाज सेवा संस्था के मुखिया ने अपने मातहत को फ़ोन किया, "अभी तैयार हो जाओ, एक रेल दुर्घटना में बहुत लोग मारे गए हैं। वहां जाना है, एक घंटे में हम निकल जाएंगे।"

"लेकिन वह तो बहुत दूर है।" मातहत को भी दुर्घटना की जानकारी थी।

"फ्लाइट बुक करा दी है, अपना बैनर और विजिटिंग कार्ड्स साथ ले लेना।"

"लेकिन इतनी जल्दी और वो भी सिर्फ हम दोनों!" स्वर में आश्चर्य था।

"उफ्फ! कोई छोटा कांड हुआ है क्या? बैनर से हमें पब्लिसिटी मिलेगी और मेला चल रहा था। हमसे पहले जेवरात वगैरह दूसरे अनधिकृत लोग ले गये तो! समय कहाँ है हमारे पास?"

 

(4). संवेदनशील

 

मरने के बाद उसे वहां चार रूहें और मिलीं। उसने पूछा, "क्या तुम भी मेरे साथ रेल दुर्घटना में मारे गए थे?"

चारों ने ना कह दिया।

उसने पूछा "फिर कैसे मरे?"

एक ने कहा, "मैनें भीड़ से इसी दुर्घटना के बारे में पूछा कि ईश्वर के कार्यक्रम में लोग मरे हैं। तुम्हारे ईश्वर ने उन्हें क्यूँ नहीं बचाया, तो भीड़ ने जवाब में मुझे ही मार दिया।"

वह चुप रह गया।

दूसरे ने कहा, "मैंने पूछा रेल तो केंद्र सरकार के अंतर्गत है, उन्होंने कुछ क्यूँ नहीं किया? तो लोगों ने मेरी हत्या कर दी।"

वह आश्चर्यचकित था।

तीसरे ने कहा, "मैनें पूछा था राज्य सरकार तो दूसरे राजनीतिक दल की है, उसने ध्यान क्यूँ नहीं रखा? तब पता नहीं किसने मुझे मार दिया?"

उसने चौथे की तरफ देखा। वह चुपचाप सिर झुकाये खड़ा था।

उसने उसे झिंझोड़ कर लगभग चीखते हुए पूछा, “क्या तुम भी मेरे बारे में सोचे बिना ही मर गए?"

वह बिलखते हुए बोला, "नहीं-नहीं! लेकिन इनके झगड़ों के शोर से मेरा दिल बम सा फट गया।"

 

(5). और कितने

 

दुर्घटना के कुछ दिनों बाद देर रात वहां पटरियों पर एक आदमी अकेला बैठा सिसक रहा था।

वहीँ से रात का चौकीदार गुजर रहा था, उसे सिसकते देख चौकीदार ने अपनी साइकिल उसकी तरफ घुमाई और उसके पास जाकर सहानुभूतिपूर्वक पूछा, "क्यूँ भाई! कोई अपना था?"

उसने पहले ना में सिर हिलाया और फिर हाँ में।

चौकीदार ने अचंभित नज़रों से उसे देखा और हैरत भरी आवाज़ में पूछा, " भाई, कहना क्या चाह रहे हो?"

वह सिसकते हुए बोला, "थे तो सब मेरे अपने ही... लेकिन मुझे जलता देखने आते थे। मैं भी हर साल जल कर उन्हें ख़ुशी देता था।"

चौकीदार फिर हैरत में पड़ गया, उसने आश्चर्यचकित होकर पूछा, "तुम रावण हो? लेकिन तुम्हारे तो एक ही सिर है!"

"कितने ही पुराने कलियुगी रावण इन मौतों का फायदा उठा रहे हैं और इस काण्ड के बाद कितने ही नए कलियुगी रावण पैदा भी हो गए। मेरे बाकी नौ सिर उनके आसपास कहीं रो रहे होंगे।"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 631

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 8, 2018 at 5:37pm

आदरणीय चंद्रेश भाई साहब सादर नमन, कथाएं उत्तम!

Comment by Arpana Sharma on October 25, 2018 at 12:16am

उद्वेलित करती रचनाएँ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 24, 2018 at 12:06pm

आ.चंद्रेश जी, पाँचों कथाओं ने मन झकझोर दिया। तमाम सामाजिक धार्मिक बिसंगतिया जो हमारी मानसिकता में बस गयीं हैं, मृत्यु बाद भी पीछा नहीं छोड़ती इस बात को बखूबी उकेरा है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 23, 2018 at 4:51pm

ये पांचों बेहतरीन लघुकथायें फीचर किये जाने पर तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब  डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी साहिब।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 22, 2018 at 3:20pm

आदाब। नई सदी की विकासशील साम्प्रदायिकता,  मीडियापा, चोर-उचक्कों के विकासशील चोलों में मौक़ापरस्ती, भाव-विस्फोटक-संवेदनशीलता और बहुरूपिया विकासशील शैतानियत इंगित करती बेहतरीन प्रतीकात्मक/संकेतात्मक/मानवेत्तर सम्ममिश्रित शैली की तात्कालिक समसामयिक ज्वलंत व विचारोत्तेजक पंच-लघुकथाओं के सृजन हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और एतद द्वारा हम लघुकथा-प्रेमियों को सोदाहरण मार्गदर्शन देने हेतु हार्दिक आभार डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी साहिब।मुहतरम जनाब 

Comment by TEJ VEER SINGH on October 22, 2018 at 11:31am

हार्दिक बधाई आदरणीय भाई चंद्रेश जी। हालिया दुर्घटना पर गज़ब की एक से बढ़कर एक लघुकथायें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
1 minute ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service