आज उनसे कामकाज नहीं हो पा रहा था। गुप्त मंत्रणा कर कोई कठोर निर्णय लिया जाना था।
"अब तो हद हो गई! छात्र-छात्राएं और शिक्षक तक मीडिया का अंधानुकरण करने लगे हैं। हमारी भी कोई प्रतिष्ठा है न!"
"हां भाई! ई-मेल एड्रेस से लेकर गणित और विज्ञान तक में हमारी अहमियत है! ... पर गालियों और अभद्र शब्दों में हम अपना उपयोग अब नहीं होने देंगे! हमारी ईजाद इसलिए थोड़े न की गई थी!"
"बिल्कुल सही कहा तुमने! हमारा अवमूल्यन हो रहा है। ई-मेल के @ से हैश टैग # वग़ैरह के बाद ये मीडिया हमें सांकेतिक गालियों '.... तेरी तो ##**@#@?*=+℅ , आई विल***#@यू!' तक में भी यूज कर रहा है!" इलैक्ट्रोनिक डिवाइस के 'की-बोर्ड (की-पेड)' के '*स्टार-केरेक्टर-की' की पीड़ा में सुर मिलाते हुए '#हैज़-केरेक्टर-की' ने कहा।
"बड़े नामी नेताओं के बड़बोले अभद्र व भड़काऊ संवाद तो मीडिया हूबहू वायरल कर देता है! किंतु आम आदमी की गालियों को हमारे केरेक्टर संकेत चिन्हों को लगाकर शॉर्ट-कट में समाचारों और चैट में लिखते हैं और कॉमिक्स वगैरह में भी! हम केरेक्टर्स का केरेक्टर इतना ढीला क्यूं?" 'स्टार-की' ने दुखी स्वर में सवाल किया।
"केरेक्टर ढीला तो भाषाओं के गुणगान करने वालों का हुआ है, जिनका कोई 'भाषा-चरित्र' और 'भाषा-उसूल' नहीं है; जो सही भाषा लिखने और बोलने में सुस्ती दिखाते हैं हमारा दुरुपयोग और अवमूल्यन करके!" 'हैज़-की' ने अपनी और अपने 'केरेक्टर-कीज़-दल' मानहानि के विरूद्ध अपील करते हुए कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, 'हैज़-की' और अपने 'केरेक्टर-कीज़-दल' के बहाने ही बहुत ही करारा व्यंग्य किया है अपने जो सही भाषा लिखने और बोलने में सुस्ती दिखाते हैं। आजकल तो फैशन ही चल पड़ा है इस तरह के प्रयोग का। बहुत ही उम्दा प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
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