"सुनो, किसी से चर्चा मत करना! अपने दफ़्तर का प्रोजेक्ट अधूरा भी छोड़ना पड़े, तो भी तुरंत ही अगली बस से यहां लौट आओ!"
"क्यों? क्या हुआ? घबराई हुई सी क्यों हो?"
"ऑफ़िस से लौटने पर आज तो मुझे मेरा सूटकेस ही पूरा खुला हुआ मिला.. और कपड़े बिखरे हुए!"
"कोई क़ीमती सामान चोरी तो नहीं हुआ?"
"क़ीमती ही नहीं.. हमारे जिगर का टुकड़ा भी! .. स्मिता अभी तक घर नहीं लौटी है! ... सूटकेस से मेरी कुछ मंहगी ड्रेसिज़, महंगा हेअर रिमूवर और सेनेटरी नैपकिन्ज़ वग़ैरह सब ग़ायब हैं!"
"तो क्या तुम्हें फिर से वैसा ही शक़ हो रहा है?"
"शक़ ही नहीं, अब तो मुझे यकीन हो रहा है कि हमारी स्मिता अपनी उस मैडम के साथ ही है! कल किसी पिकनिक पर जाने की बात कर रही थी वो मुझसे! ... मेरे मना करने पर भी तुमने क्यों पाला उसे बेटे की तरह? उस मैडम के जाल में फंस गई लगती है और उसी के लिए सब ग़ायब करती रही!"
"ओ गॉड! ... मैं आ रहा हूं! तुम भी किसी से कुछ मत कहना। कुछ घंटों में वह जब घर आये, तो बिटिया से अच्छी सहेली की तरह बात करना। ऊपर वाले को अगर यही मंजूर है, तो हम भी अपने फ़र्ज़ ही निभायेंगे, उसे अच्छी काउंसलिंग दिलाकर!
"तो क्या तुम्हें भी लगता है कि स्मिता सामान्य लड़की नहीं है! उसकी उस मैडम की तरह ही है?"
"तुमने अब तक उन दोनों के बीच की जो बातें और एक्टिविटीज़ बतायीं, उन से तो यही संकेत मिलते हैं न!"
"ओह! अब तो क़ानून ने भी उनकी आवाज़ सुन ली है! अगर यही हक़ीक़त है, तो हम भी सुनेंगे! इकलौती बिटिया है!" नम आंखों के साथ उसने अपना स्मार्ट-फ़ोन ऑफ़ किया और सूटकेस ढंग से जमा कर बेडरूम का बिखरा बिस्तर ठीक करने लगी।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। वाकई में यहां पर सबको अपनी ज़िन्दगी खुल कर जीने का अधिकार है,, बशर्ते उससे किसी का नुकसान न हो रहा हो। शायद इसी के मद्दे नजर कानूनन भी इस बात की मान्यता मिली। आपकी यह लघुकथा बेहद संजीदगी भरी और सन्देश परक है। बधाई देता हूँ
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय शेख उस्मानी जी, बहुत ही अच्छी लघुकथा हुई है। विशेषकर "अब तो कानून ने भी उनकी आवाज सुन ली है" इस पंक्ति ने कथा में छुपे रहस्य को उजागर कर दिया है। बहुत बहुत बधाई .
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।समसामयिक समस्या पर बेहतरीन लघुकथा।
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