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वक़्त आने दो ज़रा फ़िर न झुकूंगा देख लेना ।
एक दिन पत्थर पे पानी से लिखूंगा देख लेना ।

.

मैं तेरे रहमोकरम की काफिरी करता नही हूँ ।
हूँ मुकम्मल एक तूफ़ां जब उडूँगा देख लेना ।

.

हौसला रख चल पड़ा हूँ रौशनी लाने दिलों में ।
एक जुगनू सा अँधेरों से लड़ूँगा देख लेना ।

.

रास्तों में हूँ यक़ीनन दूर मुझसे मंज़िलें, पर ।
चल रहा हूँ मंजिलों पर ही रुकूँगा देख लेना ।

.

वक़्त का क्यावक़्त गुज़रेगा अँधेरी रात का भी ।
जगमगाता भोर का तारा बनूगा देख लेना ।

.

उम्र का बेशक़ तज़ुर्बा भी मुझे हो जाएगा, तब ।
रहनुमाई आपसे बेहतर करूँगा देख लेना ।

.

आग रकमिश जल रही है उठ रही चिंगारियाँ ।
जब धुँआ रह जायेगा तो न लिखूंगा देख लेना ।

.

रकमिश सुल्तानपुरी
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 18, 2018 at 10:41pm

आ. रकमिश जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by narendrasinh chauhan on October 18, 2018 at 7:52pm

खुब सुन्दर रचना

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 18, 2018 at 12:05pm

बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही ज़नाब रकमिश जी..

Comment by Samar kabeer on October 17, 2018 at 5:36pm

जनाब रकमिश सुल्तानपुरी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

एक दो जगह टंकण त्रुटियाँ देखें,कुछ शब्दों में स्पेस नहीं है ।

'उम्र का बेशक़ तज़ुर्ब भी मुझे हो जाएगा, तब'

इस मिसरे में 'तज़ुर्बा' शब्द की वजह से मिसरा बेबह्र हो रहा है,क्योंकि सहीह शब्द "तज्रिबा" है ।

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