वक़्त आने दो ज़रा फ़िर न झुकूंगा देख लेना ।
एक दिन पत्थर पे पानी से लिखूंगा देख लेना ।
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मैं तेरे रहमोकरम की काफिरी करता नही हूँ ।
हूँ मुकम्मल एक तूफ़ां जब उडूँगा देख लेना ।
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हौसला रख चल पड़ा हूँ रौशनी लाने दिलों में ।
एक जुगनू सा अँधेरों से लड़ूँगा देख लेना ।
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रास्तों में हूँ यक़ीनन दूर मुझसे मंज़िलें, पर ।
चल रहा हूँ मंजिलों पर ही रुकूँगा देख लेना ।
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वक़्त का क्यावक़्त गुज़रेगा अँधेरी रात का भी ।
जगमगाता भोर का तारा बनूगा देख लेना ।
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उम्र का बेशक़ तज़ुर्बा भी मुझे हो जाएगा, तब ।
रहनुमाई आपसे बेहतर करूँगा देख लेना ।
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आग रकमिश जल रही है उठ रही चिंगारियाँ ।
जब धुँआ रह जायेगा तो न लिखूंगा देख लेना ।
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रकमिश सुल्तानपुरी
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. रकमिश जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
खुब सुन्दर रचना
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही ज़नाब रकमिश जी..
जनाब रकमिश सुल्तानपुरी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
एक दो जगह टंकण त्रुटियाँ देखें,कुछ शब्दों में स्पेस नहीं है ।
'उम्र का बेशक़ तज़ुर्ब भी मुझे हो जाएगा, तब'
इस मिसरे में 'तज़ुर्बा' शब्द की वजह से मिसरा बेबह्र हो रहा है,क्योंकि सहीह शब्द "तज्रिबा" है ।
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