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दिल क्या लगे किसी का जब कोई न काम हो
इससे भला तो ग़ैब के घर में क़याम हो //1
कोशिश तो कर कि मुफ़लिसी मेरी न आम हो
मेरे दिवारो दर पे भी कोई तो बाम हो //2
इतना तो मेरी ख़्वाहिशों का एहतराम हो
गर हो न मय जो हल्क़ में, हाथों में जाम हो //3
कब तक हवाओं के फ़क़त बिखराव में जिऊँ
मेरे लिए भी ऐ ख़ुदा कोई निज़ाम हो //4
लैलो निहारे दर्द से घबरा गया हूँ मैं
दिन हो अगरचे दुख भरा, सुख की तो शाम हो //5
यूँ ही करूँ ख़राब क्यों लिख लिख के मैं वरक़
शायर मिजाज़ी दी है तो, मेरा भी नाम हो //6
काटूँ मैं रात आदमी क्यों होके हिज्र में
क़ुर्बे बुताँ की आरज़ू क्योंकर हराम हो //7
कागज़ पे तेरे अक्स को पढ़कर मैं जान लूँ
कोरा वरक़ ही भेज गर कोरा पयाम हो //8
अख़्तर शुमारी के लिए शब है नही मेरी
इनआम मुझको इश्क़ में ऐसा हराम हो //9
उड़ उड़ के थक गया हूँ मैं फिक्रे हयात में
अस्पे ख़्याले रोज़ोशब पे भी लगाम हो //10
मिलती नहीं है ख़ल्क़ की नव्वाबी सबको यूँ
साहब है वो ख़ुदा का जो सच में गुलाम हो //11
रहने दे मुझको ऐ ख़ुदा लुत्फे ग़रीबी में
ख़्वाहाँ ए सल्तनत नहीं जो एहतेशाम हो //12
होगी न बात सिर्फ़ मेरे ही समाअ से
इतनी गरज़ तो हो कि तू भी बाक़लाम हो //13
देता है हुक़्म हाल मुझको हर घड़ी कि अब
दुनिया से आगे के सफ़र का इंतज़ाम हो //14
परवरदिगार राज़ को बख़्शिश अता ये कर
रहलत के वक़्त लब पे उसके तेरा नाम हो //15
~राज़ नवादवी
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय अजय तिवारी जी, ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया. सादर.
आदरणीय राज़ साहब, खूबसूरत ग़ज़ल हुई है.हार्दिक बधाई.
आदरणीय बृजेश जी, ग़ज़ल में शिरकत और सुखन नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया. सादर.
वाकई इतने अशआर सभी एक से बढ़कर एक...आदरणीय समर जी ने पाठकों की और से अच्छा सुझाव दिया है..
आदरणीय तेजवीर सिंह साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर.
आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. आपकी इस्लाह का ख़याल रखूंगा. सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय राज़ नवादवी जी। बेहतरीन गज़ल ।
होगी न बात सिर्फ़ मेरे ही समाअ से
इतनी गरज़ तो हो कि तू भी बाक़लाम हो //13
जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
सब मिलाकर 18 अशआर हो गए,जब इतने ज़ियादा अशआर कहें तो दो ग़ज़लों में बाँट दिया करें,पाठकों का इम्तिहान क्यों लेना ।
कुछ शब्दों के हिंदी अर्थ
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ग़ैब- अदृश्य लोक; क़याम- थोड़े दिनों का वास; हल्क- कंठ; निजाम- व्यवस्था; लैलो-निहार- रात दिन; वरक़- पृष्ठ, पन्ना; पयाम- ख़बर, सन्देश; अख्तर शुमारी- तारे गिनना; शब- रात; फिक्रे हयात- जीवन की चिंता; अस्पे ख़्याले रोज़ोशब- रातदिन विचारों के घोड़े; ख़्वाहाँ ए सल्तनत- साम्राज्य की आकांक्षा रखने वाला- एहतिशाम- शानो शौक़त, राजसी वैभव; समाअ- सुनना, श्रवण; बाक़लाम- क़लाम के साथ/ बोलता हुआ; हाल- वर्तमान; बख्शिश- वरदान; रहलत- मृत्यु;
आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. ग़ज़ल पे इस्लाह देते वक़्त इन तीन नए अशआर पे भी नज़रे करम फ़रमाने की गुज़ारिश है.
जीकर करेंगे क्या भला ज़िल्लत भरे ये दिन
होना है कल तो आज ही किस्सा तमाम हो
लफ़्ज़ों पे आके रह गई मेरी कहानियाँ
कोशिश तो थी ये तज़किरा मेरा दवाम हो
देते हैं दाद तो सभी महफ़िल में, है पता
सुनकर न निकले वाह भी, ऐसा क़लाम हो
सादर
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