2212 1212 2212 12
दिल क्या लगे किसी का जब कोई न काम हो
इससे भला तो ग़ैब के घर में क़याम हो //1
कोशिश तो कर कि मुफ़लिसी मेरी न आम हो
मेरे दिवारो दर पे भी कोई तो बाम हो //2
इतना तो मेरी ख़्वाहिशों का एहतराम हो
गर हो न मय जो हल्क़ में, हाथों में जाम हो //3
कब तक हवाओं के फ़क़त बिखराव में जिऊँ
मेरे लिए भी ऐ ख़ुदा कोई निज़ाम हो //4
लैलो निहारे दर्द से घबरा गया हूँ मैं
दिन हो अगरचे दुख भरा, सुख की तो शाम हो //5
यूँ ही करूँ ख़राब क्यों लिख लिख के मैं वरक़
शायर मिजाज़ी दी है तो, मेरा भी नाम हो //6
काटूँ मैं रात आदमी क्यों होके हिज्र में
क़ुर्बे बुताँ की आरज़ू क्योंकर हराम हो //7
कागज़ पे तेरे अक्स को पढ़कर मैं जान लूँ
कोरा वरक़ ही भेज गर कोरा पयाम हो //8
अख़्तर शुमारी के लिए शब है नही मेरी
इनआम मुझको इश्क़ में ऐसा हराम हो //9
उड़ उड़ के थक गया हूँ मैं फिक्रे हयात में
अस्पे ख़्याले रोज़ोशब पे भी लगाम हो //10
मिलती नहीं है ख़ल्क़ की नव्वाबी सबको यूँ
साहब है वो ख़ुदा का जो सच में गुलाम हो //11
रहने दे मुझको ऐ ख़ुदा लुत्फे ग़रीबी में
ख़्वाहाँ ए सल्तनत नहीं जो एहतेशाम हो //12
होगी न बात सिर्फ़ मेरे ही समाअ से
इतनी गरज़ तो हो कि तू भी बाक़लाम हो //13
देता है हुक़्म हाल मुझको हर घड़ी कि अब
दुनिया से आगे के सफ़र का इंतज़ाम हो //14
परवरदिगार राज़ को बख़्शिश अता ये कर
रहलत के वक़्त लब पे उसके तेरा नाम हो //15
~राज़ नवादवी
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय बलराम धाकड़ साहब, आदाब. गज़ल में आपकी शिरकत और सुखन नवाज़ी का तहेदिल से शुक्रिया. सादर
मुहतरम जनाब राज़ साहब, बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल और बेहद ख़ूबसूरत अंदाज़। बहुत बहुत दाद और मुबारक़बाद क़ुबूल कीजिये।
सादर।
आदरणीय नीलेश नूर साहब, आदाब। रचना पर आपकी संतुति पाकर धन्य हुआ। ग़ज़ल में आपकी शिरकत और सुख़न नवाज़ी का तहेदिल से शुक्रिया।आपने सही कहा, कठिन शब्दों के अर्थ मुझे देने चाहिए। कमेंट में शब्दों के अर्थ लिखकर भूल सुधार करता हूँ। सादर।
आ. राज़ साहब,
खूबसूरत ग़ज़ल और ख़ूबसूरत बह्र के लिए बधाई ..
आग्रह है कि कठिन शब्दों के अर्थ लिख दिया करें ताकि पढने का मज़ा चौगुना हो जाए
सादर
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