बैसाखियाँ
वे अचानक आसमान से टपके या ज़मीन से निकले, पता ही न चला। देश के उन वीर सपूतों के नारे यदि देश के दुश्मन सुन लें तो हमारी ओर आंख उठाकर देखने की हिम्मत ही न करें। लेकिन इस वक्त उनकी बहादुरी और देशभक्ति का शिकार था वह जो, राष्ट्रगान के समय खड़ा नहीं हुआ था। उसे उसकी सज़ा तो मिलनी ही थी।
उसे जब होश आया तो वह अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा मुश्किल से सांस ले रहा था। उसका एक हाथ हथकड़ी के सहारे पलंग से जकड़ा हुआ था, और बाहर एक पुलिस का सिपाही पहरे पर था कि देश का मुजरिम कहीं भाग न जाये। देशद्रोह का इल्ज़ाम कोई मामूली नहीं होता। और जब ऊपर से ही प्रेशर हो तो पुलिस कोई लापरवाही नहीं बरतती।
एक इंस्पेक्टर उससे पूछ ताछ कर रहा था, “तुम्हारे खिलाफ एफ आई आर है। तुमने राष्ट्रगान का अपमान किया है। लेकिन इस देश मे कानून का राज है और कानून तुम्हे भी उन पीटने वालों के खिलाफ शिकायत का मौका देता है। क्या तुम भी उनके खिलाफ एफ. आई. आर. दर्ज कराना चाहते हो? उन्हें पहचान लोगे?”
“मैं उन्हें किस तरह पहचान सकता हूँ? भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता।“ उसने कहा।
अपनी कार्रवाही पूरी करके इंस्पेक्टर जाने लगा तो पीछे से आवाज़ देकर उसने पूछा, “सर, वहां से मेरी बैसाखियां मिली क्या? या उन्होने मेरी हड्डियों के साथ साथ उसे भी तोड़-फोड़ दिया। मैं गरीब आदमी, दूसरी बैसाखियां नहीं खरीद सकता। और उनके बिना खड़ा भी नहीं हो सकता।“
इंस्पेक्टर ने अनभिज्ञता के भाव से सिर हिलाया और चला गया।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय मिर्ज़ा हाफिज बेग जी, अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय मिर्ज़ा हाफिज़ बेग जी आदाब,
बहुत भी कटाक्षपूर्ण रचना । बाक़ी गुणीजन कह ही चुके हैं , संज्ञान लें । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
शुक्रिया, मोहतरम जनाब समर कबीर साहब। आपकी हौसला अफजाई का हमेशा मुन्तज़िर रहता हूं।
भाई तेजवीर सिंह जी आपकी कीमती सलाह के लिए शुक्रगुज़ार हूं। मुझे लगता है कि अंतिम पंक्ति, कमज़ोर लोगों के प्रति प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता को अभिव्यक्त करती है; जो दर्शाना मेरा उद्देश्य था। यदि ऐसा नहीं हो सका तो यह मेरी असफलता है। मेरी इच्छा है, कि इस पंक्ति को प्रभावशाली बनाने हेतु सुझाव दें। धन्यवाद।
जनाब मिर्ज़ा हफ़ीज़ बैग साहिब आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय मिर्ज़ा हफ़ीज़ बेग जी। बेहतरीन कटाक्ष पूर्ण लघुकथा।मेरी निजी राय है कि इसमें अंतिम पंक्ति अनावश्यक लग रही है। सादर।
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