एक नवगीत
समीक्षा का हार्दिक स्वागत
रैली, थैली, भीड़-भड़क्का,
सजी हुई चौपाल
तंदूरी रोटी के सँग है,
तड़के वाली दाल
गली-गली में तवा गर्म है,
लोग पराँठे सेक रहे
जन गण के दरवाजे जाकर,
नेता घुटने टेक रहे
पाँच साल के बाद सियासत,
दिखा रही निज चाल
वादों की तस्वीरें धुँधली,
कोई इरादा नेक नहीं
बिछी हुई शतरंज चुनावी,
कोई पियादा नेक नहीं
सबकी नजरें वहीं गड़ी हैं,
जिधर वोट के थाल
बुधिया की भी लगी उचट के,
भोजन सँग पाया कंबल
मुनिया को भी आज साब जी,
आये हैं देने संबल
झंडों, डंडों की विक्री से,
रामू है खुशहाल
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय Samar kabeer जी सादर नमस्कार, आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया
आदरणीय Mohammed Arif जी सादर नमस्कार, आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,अच्छा नवगीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय बसंत कुमार जी आदाब,
बहुत ही उम्दा गीत । पढ़कर मज़ा आ गया । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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