मापनी २२१ १२२२ २२१ १२२२
नफरत के’ किले सारे, हमको ही’ ढहाना है
जो हाथ मिलाया है, तो दिल भी’ मिलाना है
यूँ रोज हमें खलती, पानी की’ कमी बेशक
पर फूल मरुस्थल में, हमको तो’ खिलाना है
वादा जो’ किया तुमने, हर हाल निभा देना,
ये प्यार की’ दुनिया है, चलता न बहाना है
हों लाख कड़े पहरे, दरिया के’ किनारों पर
पर प्रेम के’ दरिया में, डुबकी तो’ लगाना है
खुशियाँ हों’ भले थोड़ी, मिल साथ मना लेना
भरमार दुखों की है, सुख का न ठिकाना है
"मौलिक एवं अप्रकाषित "
Comment
आदरणीय PHOOL SINGH जी शुभ प्रभातम, आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया
क्या बात है सर जी बहुत सूंदर बधाई
आदरणीय राज़ नवादवी जी शुभ संध्या, आपकी हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय समर कबीर जी सादर नमस्कार, मैं आपका इशारा समझ गया, अवश्य प्रयास करता हूँ, यइसी तरह स्नेह बनाये रखें
आदरणीय बसंत कुमार जी, आदाब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए मुबारकबाद. सादर.
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल है,बधाई स्वीकार करें ।
थोड़ा शिल्प पर अभ्यास करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार जी।बेहतरीन गज़ल।
हों लाख कड़े पहरे, दरिया के’ किनारों पर
पर प्रेम के’ दरिया में, डुबकी तो’ लगाना है
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